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दोहा
१. देवता अपने सिंहासन से उठकर जहां बाण पड़ा था वहां आया। बाण को हाथ में लिया और नाम पढ़कर निर्णय किया।
२. तदनंतर मन में अध्यवसाय उत्पन्न होने पर विचार किया जंबूद्वीप में भरतेश्वर चक्रवर्ती उत्पन्न हुआ है।
३. मुझे इस समय भरत को उपहार देना चाहिए। मागध तीर्थ कुमार देवता का तीनों ही कालों में यह परंपरागत व्यवहार है।
४. इसलिए मैं भी भरत राजा के पास जाऊं और उपहार उनके सामने प्रस्तुत कर विनयपूर्वक निवेदन करूं।
५. ऐसा सोचकर उसके हार, मुकुट, कुंडल, हाथों के कड़े, भुजबंध आदि वस्त्र-आभरण साथ लिए।
६,७. नामांकित बाण व मागध तीर्थ का पानी हाथ में लेकर तीव्रतम देव गति से चलकर भरत के पास आकर आकाश में खड़ा रहा। नन्हीं घूघरियों सहित रुचिर वस्त्राभूषणों को पहने हुए वह विनयपूर्वक बोला।
ढाळ : २१
हे पुण्यवान् राजेंद्र ! मेरा सौभाग्य है कि आप जैसे भूपति प्राप्त हुए। १,२. दोनों हाथ जोड़, आवर्तन कर, मस्तक पर अंजली रखकर विनयपूर्वक शीश झुकाकर भरतजी का गुणगान करने लगा-जिन शत्रुओं की आपने जीता नहीं है,