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१.
दुहा इम कहें सेवग पुरष नें, मंजण घर में कीयों परवेश। सिनांन मरदान करे भरतजी, पेंहस्या आभूषण इधिक विशेस।।
२. मंजण घर माहि थी नीकल्यो, मन माहे इधिक आणंद।
जाणे वादल माहि थी नीकल्यों, रज रहीत पुनम रों चंद।।
३. हय गय रथ परवस्यों थकों, साथे वड वडा जोध भूपाल।
चउरंगणी सेन्या सहीत सूं, आयो उवठाण साल।।
४. जिहां चउघंटां अश्वरथ तिहां, तिण उपर बेंठों आय।
चउरंगणी सेन्या सहीत सूं, आघा चाल्या भरत महाराय।।
५. वड वडा जोध विरंद सं, विंट्यो थकों नरिंद।
चक्ररत्न देखालें मारग चालतों, मन माहें इधिक अणंद।।
६. अनेक राजां रा वृंद लारे चालता, सीह जिम नाद करत।
होय रह्या कल कल शब्द हरषना, समुद्र कलोल जेम गूंजंत।।
७. पूर्व दिस मागध तीर्थ, तिहां, लवण समुद्र में कीयों परवेश।
रथ धुरी भीजें समुद्र में तिहां, रथ ऊभो राख्यों भरत नारस।।
८. मागध तीर्थ कुमार देवता भणी, पाय नमावण काज।
वळे आंण मनावण तेहनें, उदम करें , भरत माहाराज।।