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भरत चरित
११३ १३. बढ़ईरत्न यह आदेश सुनकर हर्षित हुआ। उनके वचन को स्वीकार कर जैसा भरतजी ने कहा वैसा कर उनकी आज्ञा को प्रत्यर्पित किया।
१४. तब भरतजी हस्तीरत्न से उतरकर पौषधशाला में आए और मगध तीर्थकुमार के निमित्त वहां तीन दिन की तपस्या शुरू की।
१५. तीन दिन पूरे होने पर भरतजी पौषधशाला से बाहर निकल कर उपस्थान शाला में आकर सेवक को बुलाकर आदेश देते हैं।
१६. तुम चतुरंगिनी सेना को सज्जकर, चतुर्घट रथ को सजाकर, रथ में घोड़ों को जोतकर सज्ज करो तथा मेरे आदेश की अनुपालना कर मुझे प्रत्यर्पित करो।
१७. भरतजी सेवक को जो जो आज्ञा देते हैं वह उल्लासपूर्वक वह काम करता है। यह पूर्वकृत तपस्या का फल है तथा तपस्या कर वे मोक्ष में जाएंगे।