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दोहा १,२. अब अपने सेनापति को बुलाकर भरत महाराज कहते हैं कि गज-रत्न को साज-श्रृंगार कर सावधान करो तथा घोड़े-हाथी-रथ सुभट आदि चतुरंगिनी सेना शीघ्रता से सज्ज करो और मेरी आज्ञा को प्रत्यर्पित करो।
३. सेवक ने उन्होंने जैसा कहा वैसा ही किया और उनकी आज्ञा को प्रत्यर्पित किया। उसके बाद भरत नरेंद्र स्नानघर में आए।
४. स्नान-मर्दन के बाद जैसे पहले कहा गया है उसी प्रकार सब कुछ किया। अनेक प्रकार के बहुमूल्य आभूषणों को धारण किया।
५. जब वे स्नानघर से बाहर आए तो उन्हें देखकर लोगों को आनंद हुआ। ऐसा लगा जैसे बादलों में से नीरज चंद्रमा बाहर आया है।
६. अनेक सुभट-सेनापतियों से परिवृत्त होकर रसभरी यशोगाथाएं बुलवाते हुए ठाठ-बाट से उपस्थान शाला में आते हैं।
ढाळ : १९
भरतजी छह खंड जीतने के लिए निकले हैं। १. भरतजी पटहस्ती पर चढ़कर, सिर पर छत्र धराकर, सकोरंट फूलों की माला पहनकर, दोनों ओर चामर डुलाते है।