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भरत चरित
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१६. ऋषभ देव को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ, आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ और घर में पौत्र उत्पन्न हुआ। एक समय में तीनों बधाइयां मिलीं।
१७. ऋषभदेव को अनुत्तर केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। यह पहली बधाई दी गई इसका उन्होंने बड़े उत्साह से महोत्सव किया।
१८. उसके बाद घर में पौत्र उत्पन्न हुआ, यह बधाई दी गई। उसका भी जन्म महोत्सव के रूप में बड़े ठाठ-बाट से महोत्सव किया।
१९. उसके बाद सेवक ने आकर चक्ररत्न उत्पन्न हुआ उसकी बधाई दी। उसका भी बड़े ठाठ-बाट से महोत्सव किया।
२०. पूर्वकृत तप के फल के रूप में पुण्य के अनुसार उन्हें जहां-तहां से सम्पदा एवं ऋद्धियां आकर प्राप्त हुईं।
२१. भरत नरेंद्र को ये सब ऋद्धि-संपदा विनीता में स्वतः मिलीं। अब वे छह खंड साधने के लिए व्यापक तैयारी के साथ विनीता से निकलते हैं।
२२. छह खंड को वे अपने बल-पराक्रम से जीतेंगे। सेना आदि को साथ ले जाएंगे यह तो बड़े राजाओं की परंपरा है। भरतेश्वर के पुण्य के फलों को जानें।
२३. पूर्व तप के प्रभाव से सभी वस्तुएं मिलेंगी, फिर वे संयम ग्रहण कर तपस्या कर इसी भव में मोक्ष जाएंगे।