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दुहा १. तिण मोंरादेवी माता तणों, श्री रिक्षभदेवजी अंगजात।
त्यांरा पुत्र भरतजी पाटवी, ते प्रसिध लोक विख्यात।।
२. चक्ररत्न
तिणनें
भरत रें ऊपनों, ते चाल्यों गगन भरतजी देखनें, पाम्या छे अतंत
आकास। हुलास।।
३. भरत नरिंद तिण अवसरें, मन माहे कीयों विचार।
छ खंड माहे आंण मनावणी, हिवें ढील न करणी लिगार।।
४. हिवें तिण अवसर वनीता मझे, कुण कुण साथ समांन। __ वळे कुण कुण रिध आवे मिली, ते सुणों सुरत दे कान।।
ढाळ : १८ (लय : चुतर नर जोवों कर्म विपाक)
पुन तणा फल जाण।। जी हो सोंलें सहंस देवता तिहां, आया भरत नरिंद री हजूर। जी हो सनाह बंध सजीया थका, आय ऊभा छे कडा चूड। भरतेसर।
१.
२.
जी हो दोय सहंस तो देवता, दोनूंह पासें रहें , तांम। जी हो ते रिख्या करें सेवग थका, भरत नरिंद री ठाम ठांम।।
३. जी हो चवदें सहंस देवता, रहें चवदें रत्न रें पास।
जी हो ते रिख्याकारी , तेहना, त्यांने साताकारी छे तास।।
४.
जी हो चवदें हजार देवता सहू, रहें चवदे रत्न री लार। जी हो ते सारा सेवग भरतजी तणा, भरतजी रा छे आगनकार।।