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दोहा
१. अब ऋषभदेव की माता मोरादेवी हाथी पर बैठे-बैठे निर्मल ध्यान ध्याते हुए मोक्ष में गई वह वर्णन कान लगाकर सुनें ।
ढाळ : १७
वहां मोरादेवीजी माता ने करोड़ पूरब तक खूब साता प्राप्त की । १. झगमग-झगमग करती विनीता नगरी के स्वर्णमय कोट देवताओं के मन को भी मोह लेते हैं।
२. मोरादेवी माता के उदर में आदिनाथजी आकर उत्पन्न हुए । उन्होंने ऋषभदेवजी जैसे पुत्र को जन्म दिया, इसलिए अपने युग में वे माता के रूप में प्रख्यात हुईं।
३. गादी तकियों के बीच शय्या पर विराजमान भरत और बाहुबल जैसे उनके पोते थे । वे उनकी दादी के रूप में शोभित हुईं।
४. भरत-बाहुबल के अतिरिक्त अट्ठानवे छोटे पोते हंसते खिलते उनके चरणों में नमन करते थे । उनका रूप अनुपम और उत्तम था ।
५. उनकी ब्राह्मी - सुंदरी पौत्रियां अकन कुमारी रहीं । वे महासतियां मोक्ष में पहुंचीं। उनकी संसार में भारी शोभा हुई ।
६. आदिनाथजी के दीक्षा ग्रहण कर लेने पर मोरादेवी को पुत्र वियोग हो गया । पुत्र को अति दुःखित जानकर घट में शोक धारण करने लगी ।
७. आदिनाथजी के विनीता पधारने पर जब भरत ने उन्हें बधाई दी तो वे हर्षित होकर हाथी पर बैठकर पुत्र वंदन के लिए आईं।