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भरत चरित
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५,६. ब्राह्मी-सुंदरी के ये वचन सुनकर बाहुबल मन में विचार करने लगे- इस जंगल में कौन भाई है और कौन बहन है? लगता है ये दोनों मेरी बहनें ब्राह्मी और सुंदरी ही हैं। ऋषभ जिनेंद्र ने इन्हें भेजा है। इन्होंने तो संयम ग्रहण कर लिया।
७. इनके असत्य बोलने का त्याग है तब ये ऐसी भाषा कैसे बोल रही हैं? कह रही है भाई ! हाथी से नीचे उतरो। पर मेरे पास हाथी कहां है?।
८. इनको ऋषभ जिनेश्वर ने मुझे समझाने के लिए भेजा है। ये भी झूठ बोलें जैसी बात नहीं है। जरूर मेरे अंदर ही कुछ अवरोध है।
९. बाहुबलजी को अब अपने में ही अवगुण दीखने लगा। वे सोचने लगे- मैंने हाथी-घोड़े-रथ आदि का तो परिहार कर दिया है पर मुझे अहंकार आ गया।
१०. मैं अपने अट्ठानवे छोटे भाइयों को सिर झुकाकर वंदना नहीं करूंगा- यह मेरा जो अहंकार है, यह मोटे हाथी के समान है।
११. हाथी पर सवार जीव तो कर्म क्षीण कर मोक्ष में भी चला जा सकता है, पर अहंकार रूपी हाथी पर सवार मोक्ष नहीं पहुंच सकता।
१२. इन्होंने पहले चारित्र लिया, अत: मैं इन्हें सिर झुकाकर नमन करता हूं। दीक्षा में बड़े हैं वे बड़े है। अब ये मेरे भाई छोटे नहीं हो सकते।
१३. मैं इतने दिन इनसे अलग रहा, यह मेरा बड़ा भोलापन है। मैं छोटे भाइयों को वंदना नहीं करूं यह भी मैंने गलत सोचा।
१४. अब मैं जाकर सिर झुकाकर अट्ठानवे भाइयों को नमस्कार करूं, उनके चरणों का स्पर्श कर क्षमा मांगूं जिससे मेरी सारी गलती मिट जाए।
१५. मन को वैराग्य की ओर मोड़कर, अपने अहंकार को छोड़कर ज्योंही वंदना के लिए कदम उठाया तब केवलज्ञान उत्पन्न हो गया।