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दोहा १. श्री ऋषभ जिनेश्वर ने ऐसा कहा- तुम जैसा चाहो वैसा करो। पर खोजने से बाहुबल तुम्हें नहीं मिलेगा। उसे शब्द सुनाना।
२. यह वचन सुनकर ब्राह्मी-सुंदरी ने उसे विनयपूर्वक स्वीकार किया और मन में उत्साह भरकर बाहुबल को समझाने के लिए चलीं।
३. ब्राह्मी और सुंदरी उस घनघोर जंगल में आई और बाहुबल को समझाने के लिए गीत गाने लगीं।
४. वे किस प्रकार गीत गाती हैं, किस प्रकार बाहुबल को समझाती हैं और किस प्रकार बाहुबल को केवलज्ञान उत्पन्न होता है उसे चित्त लगाकर सुनें।
ढाळ : १५
___१. ब्राह्मी-सुंदरी बाहुबल को समझाने के लिए गहन जंगल में इधर-उधर घूम घूमकर गीत गाती हैं- मेरे भाई बाहुबल! हाथी से नीचे उतरो।
२. तुमने विवेकपूर्वक राज्य, समृद्धि, पुत्र-पत्नी आदि सबको छोड़ दिया पर अभी तक हाथी नहीं छूटा।
३. मेरे भाई ! हाथी से नीचे उतरो। हाथी पर चढ़े रहने से तुम्हें केवलज्ञान प्राप्त नहीं होगा। अपने स्वत्व को खोजो। तभी तुम्हें केवलज्ञान होगा।
४. बाहुबल को समझाने के लिए ब्राह्मी-सुंदरी कह रही है- ऋषभ जिनेश्वर में हमें तुम्हारे पास भेजा है।