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चलते हैं। अब आपको उकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूप बनाना सीखना है। आशा है कि पहले का ज्ञान न भूलकर पाठक आगे पढ़ेंगे।
उकारान्त पुल्लिंग 'भानु' शब्द के रूप 1. प्रथमा
भानुः
भानु (सूर्य) 2. द्वितीया
भानुम्
भानु को 3. तृतीया
भानुना
भानु ने, द्वारा 4. चतुर्थी
भानवे
भानु के लिए 5. पञ्चमी
भानोः
भानु से 6. षष्ठी
भानु का 7. सप्तमी
भानौ
भानु में, पर सम्बोधन
हे भानो हे भानु इकारान्त तथा उकारान्त पुल्लिंग शब्दों के पंचमी तथा षष्ठी के एकवचन के रूप एक जैसे होते हैं। पाठकों ने यह बात 'रवि, नृपति, मुनि' शब्दों में देखी होगी तथा 'भानु' शब्द के रूपों में इस पाठ में स्पष्ट हो गई होगी। पंचमी तथा षष्ठी के रूप समान होते हैं, इस कारण षष्ठी के स्थान पर (,) ऐसा चिह दिया है जिसका मतलब यह है कि यहाँ का रूप पूर्व की विभक्ति के समान ही है। आशा है कि पाठक इस विशेषता को ध्यान में रखेंगे।
उकारान्त पुल्लिग शब्द भानुः-सूर्य।
गुरुः-अध्यापक। कारुः-कारीगर।
विष्णुः-विष्णुदेव। अंशुः-किरण।
तरुः-पेड़। सिन्धुः-समुद्र, नदी। मरुः-रेगिस्तान। शम्भुः-शिवजी।
शत्रुः-दुश्मन। जिष्णुः-विजयशील। मृत्युः-मौत। ऋतुः-यज्ञ।
बाहुः-भुजा। साधुः-सन्त, महात्मा। लड्डूः-लड्डू, पेड़ा। शङ्कुः-नुकीला पदार्थ। शान्तनुः-भीष्म पितामह के पिता। स्नायुः-पुट्ठा, रग। ये सब शब्द पूर्वोक्त 'भानु' शब्द के समान ही चलते हैं।
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