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इसी प्रकार सब धातुओं के रूप आप आसानी से बना सकते हैं। भविष्यत् काल के रूप बनाना भी कोई कठिन नहीं है।
पाठ 39
याच्यमान-मांगा हुआ विगत-चेतनः-बेहोश मुहूर्त-घड़ी-भर श्रेयः-कल्याण राजीवम्-कमल लोचनम्-नेत्र कूटम्-कपट वियोगः-दूर होना प्रतिश्रुत्य-सुनकर हातुम्-छोड़ने के लिए विपर्ययः-उलटा प्रकार प्रोत्साहित-जोश उत्पन्न किया आह्वयत्-बुलाया अभिवर्षतः-वर्षा करते हैं (वे दोनों) स्वेन-अपने बहुरूप-बहुत प्रकार प्रत्युवाच-उत्तर दिया ऊन-कम, न्यून कालोपम-मृत्यु के सदृश सक्रोध-क्रोध के साथ सम्प्रति-अब अयुक्त-अयोग्य कुलम्-वंश मुष्टि-मूठ वदनम्-मुँह अनुजग्मतुः-पीछे से गये सलिलम्-जल्
ददामि-देता हूं क्षुत्पिपासे-भूख और प्यास सम्पन्न-युक्त शरत्कालीन-शरद् ऋतु का दिवाकर-सूर्य इक्ष्वाकु-कुल का नाम दारुण-भयानक नाग-हाथी, सांप शक्रः-इन्द्र आवृत्य-घेरकर निष्कण्टकं-निरुपद्रव नृशंस-बुरा, निंद्य अनृशंस-स्तुत्य प्रहृष्ट-खुश अश्विनोपमौ-अश्विनी कुमारों के सदृश अर्घयोजन-एक कोश, दो मील बलाअतिबला- विद्याओं के नाम स्पृष्ट्वा-स्पर्श करके प्रतिगृहीतवान्-लिया ददृशाते-देखा नावम्-नौका शिवम्-कल्याणयुक्त कालात्ययः-समय का अतिक्रम समाप्ति-समयः-समाप्ति का काल । कथयाञ्चक्रुः-कहा आरोहतु-चढ़ो