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कुशलकारणं तिष्ठति । स मातुलोऽपि नायातः । तत्कि चिरयति । (15) एवं तैः अभिहितं कुलीरकोऽपि विहस्य उवाच - मूर्खाः सर्वे जलचरास्तेन " मिथ्यावादिना वञ्चयित्वा, नातिदूरे शिलातले प्रक्षिप्ताः भक्षिताश्च । तत् मया तस्य अभिप्रायं ज्ञात्वा, ग्रीवा इयम् आनीता । ( 16 ) तदलं सम्भ्रमेण । अधुना सर्वजलचराणां क्षेमं भविष्यति । -पञ्चतन्त्रम् ।
पाठ 25
अब स्त्रीलिंग शब्दों के रूप बनाने का प्रकार लिखते हैं । संस्कृत में कोई अकारान्त शब्द स्त्रीलिंगी नहीं है । आकारान्त शब्द प्रायः स्त्रीलिंग हुआ करते हैं। थोड़े ऐसे शब्द हैं जो आकारान्त होने पर भी पुल्लिंग हैं । परन्तु उनको छोड़ दिया जाय तो बाकी के सब आकारान्त शब्द स्त्रीलिंग हैं ।
आकारान्त स्त्रीलिंग 'विद्या' शब्द
1. विद्या
(हे) विद्ये
सम्बोधन
विद्याम्
विद्यया
विद्यायै
विद्यायाः
15. चराः+तेन ।
विद्ये
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2.
3.
4.
5.
6.
विद्यानाम् विद्यासु
7.
विद्यायाम् इसी प्रकार ‘गङ्गा, रमा, कृपा मज्जा, जिह्वा, भार्या, माला, गुहा, शाला, बाला,
विद्याभ्याम्
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विद्ययोः
विद्याः
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विद्याभिः
विद्याभ्यः
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( शनैः.....आससाद) धीरे-धीरे उस तालाब के पास पहुँचा। ( 14 ) ( कुशलकारणं तिष्ठति) कुशल है न । ( 15 ) (तैः अभिहिते) उनके कहने पर । (मूर्खाः.... आनीता) मूर्ख सब जलनिवासी प्राणी, उस असत्यभाषी ने ठगकर पास के पत्थर पर फेंककर खाये। इसलिए मैं उसका मतलब जान यह गला लाया । ( 16 ) ( तदलं.... भविष्यति ) तो बस है अब घबराना । अब सब जल - निवासियों का कल्याण होगा ।