________________
चलते हैं। जिन विभक्तियों के दो-दो रूप होते हैं, उनकी ओर पाठकों को विशेष ध्यान देना चाहिए।
शब्द-पुल्लिंग कुठारः, परशुः = कुल्हाड़ा। विलापः = शोक। कण्ठः = गला।
स्त्रीलिंग सरित् = नदी। मुद् = आनन्द । मुदा = आनन्द से। बुद्धिः = ज्ञानशक्ति। नदी = दरिया। नगरी = शहर।
नपुंसकलिंग श्रेयः = कल्याण। पारतोषिकम् = इनाम। वृत्तम् = वार्ता, हकीकत। यन्त्रम् = यंत्र, मशीन।
क्रिया प्रातिष्ठत = रहा। स्वीचकार = स्वीकार किया। अभजत् = सेवन किया। अरोदीत् = रोया। उदमज्जत् = जल से बाहर आया। निमज्य = डूबकर। शुशोच = शोक किया। आविरासीत् = प्रकट था। उद्गच्छत् = ऊपर आया। आजगाम = आया। निर्भय॑ = निन्दा करके। अकथयत् = कहा। उददीधरन् = ऊपर धर दिया। परिदेवितुम् = शोक करने के लिए। प्राक्रस्त = प्रारम्भ किया। अदत्वा = न देकर।
विशेषण राजत = चांदी का। लुनत् = काटनेवाला। मुक्तकंठ = खुले गले से। कुटिल = कपटी। बुद्धिपूर्वक = जान-बूझकर। श्रेयस्कर = कल्याण कारक।
__(17) श्रेयः सत्ये प्रतिष्ठितम् __ (1) कस्यचित् पुरुषस्य एकं वृक्षं लुनतो हस्तात् सहसा निसृतः कुठारो जलम'भजत्। (2) ततः स शुशोच, मुक्तकण्ठं च अरोदीत्। (3) तस्य विलापं श्रुत्वा वरुणःआविरासीत्। (4) तं वरुणं स पुरुषः शोककारणम् अकथयत्। (5) तदा वरुणो जलान्तः प्रविश्य सुवर्णमयं कुठारं हस्तेन आदाय उदमज्जत्। तस्मै पुरुषाय तं कुठारं
1041. कुठारः+जलं। 2. वरुणः+आवि.।