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12. नहि, नहि, सः तत्र नास्ति-नहीं, नहीं, वह वहाँ नहीं है।
शब्द
द्वारम्-द्वार, दरवाज़ा। वातायनम्-खिड़की। मुखम्-मुँह। पिधेहि-बन्द कर। पिब-पी।
स्थम्-गाड़ी। पात्रम्-बर्तन। उद्घाटय-खोल। कपाटम्-किवाड़। नेत्रम्-आँख।
वाक्य
1. द्वारम् उद्घाटय पात्रं च अत्र आनय-दरवाज़ा खोल और बरतन यहाँ ले आ। 2. वातायनं पिधेहि जलं च पिब-खिड़की बन्द कर और जल पी। 3. रथम् अत्र आनय फलं च तत्र नय-रथ यहाँ ले आ और फल वहाँ ले जा। 4. पात्रम् अत्र न आनय-बरतन यहाँ न ला। 5. कथं त्वम् अन्यत् पात्रम् आनयसि-तू दूसरा बर्तन क्यों लाता है ? 6. अहम् अन्यत् पात्रं न आनयामि-मैं दूसरा बर्तन नहीं लाता हूँ। 7. रथम् आनय वनं च श्वः प्रभाते गच्छ-रथ ले आ और वन को कल सवेरे जा। 8. जलं देहि मोदकं दुग्धं च स्वीकुरु-जल दे, लड्ड और दूध ले। 9. त्वं कुत्र असि-तू कहाँ है। 10. अहम् अत्र अस्मि-मैं यहाँ हूँ। 11. धन् देहि स्वादु दुग्धं च अत्र आनय-धन दे और स्वादिष्ट दूध यहाँ ले आ। 12. कपाटम् उद्घाटय पुष्पमालां च तत्र नय-किवाड़ खोल और फूलों की माला
वहाँ ले जा। 13. त्वं फलं भक्षयसि किम्-क्या तू फल खाता है ? 14. नहि, अहं मोदकम् आनं च भक्षयामि-नहीं, मैं लड्डू और आम खाता हूँ। 15. यदि त्वं रथम् आनेष्यसि तर्हि अहं हरिद्वारं गमिष्यामि-अगर तू रथ ले आएगा
तो मैं हरिद्वार जाऊँगा। अब 'रथ' और 'मार्ग' शब्द के सातों विभक्तियों के एकवचन के रूप देते
___'रथ' शब्द के रूप 1. रथः-रथ। 2. रथम-रथ को।
'मार्ग' शब्द के रूप मार्गः-मार्ग। मार्गम्-मार्ग को।