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कथा में आए हुए विशेष शब्दों के आध्यात्मिक अर्थ
नवद्वारं नगरम् = शरीर। सचिवः = मन। प्रकाशानन्दः = आँख । स्पर्शानन्दः = त्वचा, चमड़ा। संल्लापानन्दः = वाक् मुंह। आनन्दवर्मन् = जीवात्मा। सार्वभौम = ईश्वर। सौरभानन्दः = नाक। रसानन्दः = जिहा।
ये अर्थ वास्तव में इन शब्दों के नहीं, अपितु कथा के प्रसंग से मानते हुए हैं-यह बात पाठकों को ध्यान रखनी चाहिए। (15) प्रबोधकृद् रूपकम् (15) ज्ञान देनेवाली आलङ्कारिक
कथा
(1) अस्ति विश्वमण्डलेषु नवद्वारं नाम (1) इस जगत्-चक्र में नौ दरवाज़ों नगरम् । तत्र च बभूव पतिः आनन्दवर्मा वाला शहर है। वहां आनन्दवर्मा नामक नाम।
राजा हुआ। (2) आसीच्च' अस्य कोऽपि सचिवः, (2) उसका कोई एक मंत्री था, और अन्ये च नियोज्या बहवः।
अन्य सेवक बहुत कम थे। (3) सरलतममतिरसौ' भूपः सर्वेषु (3) अति सरल बुद्धिवाला यह राजा अपि एतेषु तथा विश्वसिति, तथा च इन सबके ऊपर वैसा ही विश्वास रखता, सिन्नति, तथैव चैतान् पालयति, यथैते और स्नेह करता, और इनको वैसा ही सर्वेऽपि' प्रत्येकं वयमेव भूपाला इति पालता, जिससे कि ये सब (हर एक) 'हम मन्यन्ते स्म।
ही राजा हैं' ऐसा मानते रहे। (4) गच्छता च कालेन विभवसहर्जन (4) कुछ समय जाने पर दौलत के अनात्मज्ञभावेन आक्रान्ताः सर्वेऽपि स्वेतरं साथ उत्पन्न होनेवाले आत्मविषयक निकृष्टम् आत्मानम् एव च प्रधानमन्वानाः, अज्ञान से युक्त हुए सब अपने से गैर आनन्दवर्माणम् अपि अधिचिक्षिपुः। को नीच और अपने-आपको मुख्य मानते
हुए आनन्दवर्मा को भी नीचा मानने लगे। (5) उपाक्रसत च विवादं अन्योऽन्यम् । (5) प्रारम्भ हुआ झगड़ा एक-दूसरे अथ एवं विवदमाना एते कमपि सार्वभौमम् से। इस प्रकार झगड़ते हुए वे किसी उपगत्य प्रोचुः-महाभाग, निर्णीयतां सम्राट् के पास जाकर बोले-हे श्रेष्ठ, कोऽस्मासु प्रधान इति।
निश्चय कीजिए, कौन हमारे में मुख्य है।
1. आसीत्+च । 2. कः अपि। 3. नियोज्याः बहवः। 4. मतिः+असौ। 5. च+एतान् । 6. यथा+एते। 1907. सर्वे+अपि। 8. अन्यः+अन्यम्। 9. कः+अस्मासु।