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विशेषण स्तूयमान = जिनकी स्तुति हो रही है। क्षिप्यमान = धिक्कार किया जाता हुआ। कथ्यमान = कहा जाता हुआ। समुन्नम्यमान = सम्मानित। समालाप = बराबरी से बोलने वाला। अनादिष्ट = आज्ञा न किया हुआ। मूक = गूंगा। जड़ = अज्ञानी, अचेतन। आलप्यमान = बोला जाता हुआ। ध्वजभूत = झंडे के समान। अन्ध = अंधा।
इतर
अग्रतः = आगे। प्रतीपम् = विरुद्ध ।
क्रिया
विज्ञपयन्ति = बताते हैं। विकत्यन्ते = कहते हैं। अभिवाञ्छन्ति = इच्छा करते हैं। पलाय्य = भागकर। निलीयन्ते = छिपते हैं। अल्पन्ति = बोलते हैं। सेवन्ते = सेवा करते हैं। पराक्रम्य = शौर्य (प्रस्तुत) करके।
विशेषणों का उपयोग कथ्यमाना कथा, उच्यमानः उपदेशः, क्षिप्यमान पात्रम्, स्तूयमानः पुरुषः, अन्धा स्त्री, स्वाधीनं दैवतम।
(12) भृत्य-धर्माः
- (12) नौकर के धर्म
(1) भृत्या अपि न एवं ये सम्पत्तेः विपत्तौ सविशेषं सेवन्ते।
(2) समुन्नम्यमानाः सुतरी अवनमन्ति। आलप्यमाना न समालापाः सजायन्ते।
(1) नौकर भी वे ही (है) जो दौलत से गरीबी में अधिक सेवा करते हैं। . (2) सम्मान दिये जाने पर बहुत नम्र होते हैं। बोलने पर भी नहीं बराबरी से बोलने वाले होते हैं।
(3) स्तुति पर घमण्डी नहीं होते हैं। धिक्कार करने पर अप्रीति नहीं लेते।
(3) स्तूयमाना न गर्वमनुभवन्ति। तिप्यमाणा' न अपरागं गृणन्ति।
1. भृत्याः+अपि। 2. ते+एव। 3. मानाः+न। 4. माणाः+न।