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________________ (17) ततो गृहीतोऽय* महाप्रसादः इति उक्त्वा क्रमशो मण्डूकान् खादितवान् । अतो निर्मण्डूकं सरो विलोक्य, भेकाधिपतिरपि तेन भक्षितः। (हितोपदेशः) सूचना-इस पाठ का भाषान्तर नहीं दिया है। पाठक स्वयं समझने का प्रयल करें। केवल कठिन वाक्यों का ही अर्थ दिया गया है। समास-विवरण 1. जीर्णोद्यानम्-जीर्णम् उद्यानम् जीर्णोद्यानम्। . 2. मन्दविषः-मन्दं विषं यस्य स, मन्दविषः। 3. भुजङ्गः-भुजैर्गच्छति इति भुजङ्गः भुजबाहुः (सर्पः)। 4. ब्रह्मपुरवासी-ब्रह्मपुरे वसति इति स बह्मपुरवासी। 5. सर्वगुणसंपन्नः-सर्वैः गुणैः सम्पन्नः सर्वगुणसम्पन्नः। 6. भूत-समागमः-भूतानां समागमः भूतसमागमः । 7. शोकाकुलाः-शोकेन आकुलाः शोकाकुलाः। 8. मण्डूकनाथः-मण्डूकानां नाथः मण्डूकनाथः। 9. दर्दुराधिपतिः-दर्दुराणाम् अधिपतिः दर्दुराधिपतिः। 10. निर्मण्डूकम्-निर्गताः मण्डूकाः यस्मात् तत् निर्मण्डूकम्। वनेऽपि दोषाः प्रभवन्ति) लोभियों के लिए दोष जंगल में भी पैदा होते हैं। (निवृत्तरागमस्या गृहं तपोवनम्) निर्लोभी मनुष्य के लिए घर ही तपोवन है। (13) (अहं ब्राह्मणेन शप्तः । मुझे ब्राह्मण ने शाप दिया। (अद्य आरभ्य)=आज से। (14) (वोढुं मण्डूकान्) मेंढको को उठाने के लिये। (15) (तं पृष्ठे कृत्वा)-उसको पीठ पर उठा कर। (चित्र पदक्रम । बभ्राम)-विचित्र प्रकार नाचता हुआ घूमने लगा। (16) (किं अद्य भवान् मन्दगतिः) क्यों आज आप थक गए हैं। (17) (गृहीत अयं महाप्रसादः) लिया यह महाप्रसाद । (मण्डूकान् खादितवान्) मेंढकों को खाया। (निर्मण्डूकं सरः विलोक्य) मेंढकों से खाली । हुआ तालाब देखकर। 178 14. गृहीतः+अयम्।
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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