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________________ करने के लिए कठिन। सयत्न-प्रयत्नशील । अन्य अविचारित-विचारा न गया। तुभ्यम्-तुमको। अहह-अरे ! रे !!! । प्राक्-पहले। प्रकाशम्-बाहर। क्रिया प्रसार्य-फैलाकर। उपगम्य-पास जाकर। गृह्यताम्-लीजिए। संभवति-संभव है (होता है)। निरूपयामि-देखता हूं। अपश्यम्-देखा (मैंने)। पलायितुम्-दौड़ने के लिए। प्रोज्झितुं-मिटाने के लिए। आसम्-(मैं) था। चरतु-करे, चले (वह)। उत्थापयामि-उठाता हूं (मैं)। (8) विप्र-व्याघ्रयोः कथा (8) ब्राह्मण और शेर की कथा (1) अहमेकदा' दक्षिणारण्ये चरन् (1) मैंने एक समय दक्षिण अरण्य में अपश्यम्-एको वृद्धो व्याघ्रः स्नातः घूमते हुए देखा-एक बूढ़ा शेर स्नान कुशहस्तः सरस्तीरे ब्रूते। करके दर्भ हाथ में धरकर तालाब के तीर (2) भो भो पान्थाः ! इदं सुवर्ण पर कह रहा है। कङ्कणं गृह्यताम्। ततो लोभाकृष्टेन (2) हे पथिको ! यह सोने की चूड़ी केनचित् पान्थेनालोचितम् । ले लो। इसके बाद लोभ से खिंचे हुए किसी पथिक ने सोचा(3) भाग्येनैतत् सम्भवति। किन्तु (3) सुदैव से यह संभव होता है। अस्मिन् आत्मसन्देहे प्रवृत्तिर्न विधेया। __ परन्तु इस आत्मा के संशय (वाले काय) में प्रयत्न नहीं करना चाहिए। (4) यतो' जातेऽपि समीहितलाभे (4) क्योंकि अच्छा लाभ होने पर भी अनिष्टाच्छुभा गतिर्न जायते। अनिष्ट से अच्छा परिणाम नहीं होता (5) किन्तु सर्वत्र अर्थार्जने प्रवृत्तिः सदेह एव । उक्तं च संशयम् अनारुह्य नरो भद्राणि न पश्यति। ___(5) परन्तु सब जगह पैसा कमाने में प्रयत्न संशयवाला ही (होता) है। कहा भी है-संशय के ऊपर चढ़े बिना मनुष्य 1. अहं+एकदा। 2. एकः+वृद्ध। 3. ततः+लोभ । 4. पान्थेन+आलो. । 5. भाग्येन+एतत्। 6. प्रवृत्तिः+न। 1. यतः+जाते। 8. अनिष्टात्+शुभा।
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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