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विसर्ग के पूर्व 'अ' अथवा 'आ' आने पर नियम 1 तथा 2 के अनुसार सन्धि होगी।
नियम 5-'र' के सामने '' आने से प्रथम 'र' का लोप हो जाता है, और लुप्त रकार का पूर्व स्वर दीर्घ हो जाता है। जैसे____ऋषिभिः+रचितम् =ऋषिभी रचितम्। भानुः+राधते=भानू राधते। शस्त्रैः+रक्षितम्-शस्त्रै रक्षितम्। हरेः+रक्षकः हरे रक्षकः।
पाठक इन सन्धि-नियमों को बारम्बार पढ़कर ठीक-ठीक याद करें। प्राचीन पुस्तकें पढ़ने के लिए संधि-नियमों के ज्ञान के बिना काम नहीं चल सकता तथा प्रगल्भ संस्कृत बोलने के लिए स्थान-स्थान पर संधि करने की आवश्यकता होती
__ शब्द-पुल्लिंग चरन्-घूमता हुआ। कुशः-दर्भः, घास। लोभः-लालच। अर्थः-द्रव्य, पैसा। एतावान्-इतना। विश्वासभूमिः-विश्वास का स्थान, पात्र । दाराः-स्त्री (यह शब्द सदा बहुवचन में चलता है)। पान्थः-प्रवासी, पथिक । सन्देह-संशय। आत्म-सन्देहः-अपने (विषय) में संशय । लोकापवादः-लोकों में निन्दा । भवान्-आप। विरहः-रहित होना। गतानुगतिकः-अंध-परम्परा से चलने वाला। वधः-हनन। वंशः-कुल। मूर्ध्नि-शिर में। यत्नः-प्रयत्न। महापङ्कः-बड़ा कीचड़।
स्त्रीलिंग प्रवृत्तिः-प्रयत्न, पुरुषार्थ। यौवन दशा-जवानी (की अवस्था)।
नपुंसकलिंग भाग्य-सुदैव। कंकण-चूड़ी। शील-स्वभाव। सरः-तालाब। तीर-किनारा। अर्जन-कमाना। ललाट-सिर। वचः-भाषण।
विशेषण
समीहित-युक्त, इष्ट । अनिष्ट-जो इष्ट नहीं। भद्र-कल्याण । वंशहीन-कुलहीन। अधीत-अध्ययन किया। आलोचित-देखा हुआ। विधेय-करने योग्य। मारात्मक-हिंसा-प्रवृत्तिवाला। गलित-गला हुआ। हस्तस्थ-हाथ में रक्खा हुआ। प्रतीत-विश्वस्त। धृत-धरा हुआ। आदिष्ट-आज्ञापित। निमग्न-डूबा हुआ। दुर्गत-बुरी अवस्था में फँसा हुआ। अक्षम-असमर्थ । दुवृत्त-दुराचारी। दुर्निवार-दूर