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7. त्वम् अपूपम् आनयसि-तू पूड़ा लाता है। 8. सः उत्तरीयं नयति-वह दुपट्टा ले जाता है। 9. कदा सः मसीपात्रं पुस्तकं च तत्र नेष्यति-वह दवात और पुस्तक वहाँ कब
ले जाएगा। 10. सः सायं तत्र मसीपात्रं लेखनी च नेष्यति-वह शाम को वहाँ दवात और कलम
ले जाएगा। 11. त्वं रात्रौ हरिद्वारं गमिष्यसि किम्-तू रात्रि में हरिद्वार जाएगा क्या ? 12. नहि, अहं श्वः मध्याहे तत्र गमिष्यामि-नहीं, मैं कल दोपहर को वहाँ जाऊँगा। 13. अहं गृहं गमिष्यामि सूपं च भक्षयिष्यामि-मैं घर जाऊँगा और दाल खाऊँगा।
इस समय तक पाठकों के पास वाक्य बनाने का बहुत सा मसाला पहुँच चुका है। पूर्व पाठ में जैसे 'देव' शब्द की सातों विभक्तियों के रूप दिए थे, वैसे इस पाठ में 'राम' शब्द के रूप हैं।
'राम' शब्द के रूप विभक्तियों के नाम शब्दों के रूप हिन्दी में अर्थ 1. प्रथमा
रामः
राम (ने) 2. द्वितीया रामम्
राम को 3. तृतीया रामेण
राम के द्वारा 4. चतुर्थी
रामाय
राम के लिए, को 5. पंचमी
राम से 6. षष्ठी
रामस्य
राम का, की, के 7. सप्तमी
रामे
राम में, पर सम्बोधन हे राम !
हे राम ! देव और राम इन दो शब्दों के रूप यदि पाठक भली प्रकार स्मरण करेंगे तो वे निम्न शब्दों के रूप बना सकेंगे।
यज्ञदत्त, ईश्वर, गणेश, पुरुष, मनुष्य, अश्व, खग, पाठ, दीप, उदय, गण, समूह, दिवस, मास, कण-ये शब्द देव तथा राम के समान ही चलते हैं। इनके रूप बनाकर थोड़े-से वाक्य नीचे देते हैं
1. यज्ञदत्तः गृहं गच्छति-यज्ञदत्त घर जाता है। 2. ईश्वरः सर्वत्र अस्ति-ईश्वर सब स्थान पर है। 3. हे ईश्वर ! दयां कुरु-हे ईश्वर ! दया करो। 4. हे पुरुष ! धर्म कुरु-हे पुरुष ! धर्म करो। 5. तत्र अश्वं पश्य-वहाँ घोड़े को देख।
रामात्