________________
(2) पुरुषः अब्रवीत्-स दुर्गपालः (2) पुरुष बोला-वह दुर्गपाल पीनः यौवन-सुलभेन तेजसा बलेन च मोटा-ताज़ा, तारुण्य के कारण प्राप्त हुए युक्तः स्वर्गाधिपतिरिव कालं नयति। तेज से तथा बल से युक्त स्वर्ग के राजा
के समान समय व्यतीत करता है। (3) दर्पसारः प्राह-नाहं तस्य (3) दर्पसार बोला-मैं उसके शरीर शरीरस्वास्थ्यं पृच्छामि किन्तु कथं स प्रजाः का स्वास्थ्य नहीं पूछता हूं, परन्तु कैसा शास्ति इति मह्यं कथय।
वह प्रजा के ऊपर राज्य करता है, यह
मुझे कह। (4) पुरुषोऽभाषत-स कृपणः (4) पुरुष बोला-वह कंजूस, अधर्मशीलः दुर्विनीतः क्रूरः च अस्ति। अधार्मिक, नम्रता-रहित और क्रोधी है। राजा अभाषत-प्रजाभिः दाषान् तस्य राजा बोला-प्रजाओं ने उसके दोष राजा स्वामिने कथयित्वा किमर्थं भ्रष्टाधिकारो न को कथन करके क्यों अधिकार-भ्रष्ट न कारितः।
कराया। (5) पुरुषोऽकथयत्-तस्य स्वामी (5) पुरुष बोला-उसका स्वामी स्वयं स्वयमेव अन्याय-प्रवृत्तः अस्ति। भी अन्याय करनेवाला है।
(6) राजा उवाच-पुरुष, न जानासि (6) राजा बोला-हे मनुष्य तू नहीं कोऽहमिति। पुरुषः प्रत्यभाषत-जानामि । जानता मैं कौन हूं। पुरुष बोला-मैं त्वां दुर्गपालस्य ज्येष्ठभ्रातरं मालवाधीशम्। जानता हूं कि तुम दुर्गपाल के बड़े भाई
मालव देश के राजा हो। (7) राजा अवदत्-एतद् वृत्तान्तं मम (7) राजा बोला-यह वृत्तान्त मेरे अग्रे कथयितुं कथं न बिभेषि ? सामने कहने के लिए तू कैसे नहीं डरता
भी अब
(8) पुरुषः अवदत्-ईश्वराद् (8) पुरुष बोला-ईश्वर से डरनेवाला बिभ्यत्पुरुषः तदितरस्मात् कस्माद् अपि न मनुष्य उसके सिवाय अन्य किसी से भी बिभेति।
नहीं डरता। (9) तथा च सत्यं वदन् जनो मनसाऽपि (9) उसी प्रकार सच बोलने वाला असत्यं न चिन्तयति।
मनुष्य झूठ को मन से भी नहीं चिन्तन
करता है। (10) अनेन वचनेन तुष्टो राजा पुरुषस्य (10) इस भाषण से खुश हुए राजा आर्जवं दृष्ट्वा तस्मै दीनार-सहस्रम् अददात् ने, पुरुष की सरलता को देखकर उसको अवदत् च-सत्यभाषणे कृतनिश्चयेन हज़ार मोहरें दी और कहा-सत्यभाषण पुरुषेण न कस्मादपि भेतव्यम्। करने का निश्चय किए हुए पुरुष को
किसी से भी नहीं डरना चाहिए।
AA