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(4) जरासंध - कथा
(1) पुरा किल जरासंधो नाम कोऽपि क्षत्रियः आसीत् । स दुरात्मा महावीरान् क्षत्रियान् युद्धे निर्जित्य स्ववेश्मनि निरुध्य मासि मासि कृष्णचतुर्दश्यां एकैकं हत्वा भैरवाय तेषां बलिम् अकरोत् ।
(2) एवं सकल - जनपद क्षत्रियवधे दीक्षितस्य तस्य दुष्टाशयस्य वधं अभिकाङ्क्षन् श्रीकृष्णः भीमार्जुनसहितः तस्य गृहं विप्रवेषेण प्रविवेश ।
( 3 ) स तु तान् वस्तुतो विप्रान् एव मन्वानो दण्डवत् प्रणम्य यथोचितम् आसनेषु समुपवेश्य मधुपर्कदानेन सम्पूज्य, धन्योऽस्मि, कृतकृत्योऽस्मि, किमर्थ भवन्तो मद्गृहम् आगताः तद्वक्तव्यम् ।
(4) यद् यद् अभिलषितं तत्सर्वं भवतां प्रदास्यामि इति उवाच । तद् आकर्ण्य भगवान् श्रीकृष्णः प्रहसन् पार्थिवं तं अब्रवीत् ।
(5) 'भद्र, वयं कृष्ण- भीमार्जुनाः युद्धार्थं समागताः। अस्माकं अन्यतमं द्वन्द्वयुद्धार्थं वृणीष्व इति । '
(6) सोऽपि महाबलः ' तथा ' इति वदन् द्वन्द्वयुद्धाय भीमसेनं वरयामास । अथ भीमजरासंधयोः भीषणं मल्लयुद्धं पञ्चविंशति त्रासरान् प्रवर्तते स्म । (7) अन्ते च भगवता देवकीनन्दनेन
(4) जरासंध - कथा
(1) पूर्वकाल में निश्चय से जरासंध नामक कोई एक क्षत्रिय था । वह दृष्टाशय बड़े शूर क्षत्रियों को युद्ध में जीतकर अपने घर में बन्द करके प्रत्येक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन एक-एक को हनन करके भैरव के लिए उनकी बलि करता था ।
(2) इस प्रकार सम्पूर्ण देश के क्षत्रियों का हनन करने की दीक्षा (व्रत) लिए हुए, उस दुरात्मा के वध की इच्छा करनेवाला श्रीकृष्ण, भीम तथा अर्जुन के साथ उसके घर में ब्राह्मण की पोशाक में प्रविष्ट हुआ।
(3) वह तो उनको सचमुच ब्राह्मण ही समझकर सोटी के समान ( दण्डवत् ) प्रणाम करके, यथायोग्य आसनों के ऊपर बिठाकर मधुपर्क देकर पूजा करके, (मैं) धन्य हूं, (मैं) कृतकृत्य हूं, किसलिए आप मेरे घर आए, वह कहिए ।
(4) जो जो आपको इच्छित होगा वह सब आपको दूंगा, ऐसा बोला। यह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण हंसता हुआ उस राजा से बोला ।
(5) 'हे कल्याण, हम कृष्ण, भीम, अर्जुन युद्ध के लिए आए हैं । हमारे में से किसी एक को द्वन्द्वयुद्ध के लिए चुनो' (ऐसा ) ।
(6) उस महाबली ने भी 'ठीक' ऐसा कहकर मल्लयुद्ध के लिए भीमसेन को चुना । पश्चात् भीम और जरासंध इनका भयंकर मल्लयुद्ध पच्चीस दिन हुआ ।
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(7) अन्त में भगवान देवकी - पुत्र