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अर्थात् पुरुषों का नगर आश्रय है, अलंकारों का कान तथा चित्रों का स्थान पुस्तक है।
___ सम्बोधन विभक्ति पुकारने के समय सम्बोधन का प्रयोग होता है। 1. हे धनञ्जय ! अत्र आगच्छ-हे धनंजय ! यहां आ। 2. हे पुत्रौ ! तत्र गच्छताम्-हे (दोनों) लड़को ! वहां जाओ। 3. हे मनुष्याः ! शृणुत-हे (दो से अधिक) मनुष्यो ! सुनो।
इस प्रकार सब विभक्तियों के अर्थ तथा उपयोग होते हैं। पाठकों को चाहिए कि वे बार-बार इनका विचार करके इनके अर्थों को ठीक-ठीक याद रखें और इन्हें कभी न भूलें क्योंकि इनका बहुत महत्व है। इसे अच्छी तरह याद रखने के लिए इसका सारांश नीचे दिया जा रहा है
विभक्ति अर्थ भाषा में प्रत्यय प्रथमा
कर्ता क्रिया का करनेवाला-ने द्वितीया कर्म
जो किया जाता है-को तृतीया करण क्रिया का साधन-ने, से, द्वारा
सम्प्रदान जिनके लिए क्रिया की जाए-के लिए पंचमी
अपादान जिससे वियोग होता है-से एक का दूसरे षष्ठी
सम्बन्ध के ऊपर अधिकार-का सप्तमी अधिकरण स्थान, आश्रय-में सम्बोधन आह्वान पुकारना-हे .
षष्ठी विभक्ति दो नामों का-एक पद का अन्य पद से-सम्बन्ध बताती है। शेष छः विभक्तियां एक नाम-पद का क्रिया से सम्बन्ध बताती हैं-वे कारक हैं। षष्ठी विभक्ति कारक नहीं होती।
इन विभक्तियों के अर्थ तथा उपयोग के सही ज्ञान से ही संस्कृत में वाक्य बनाने का कार्य तथा प्राचीन पुस्तकों का अर्थ-बोध होता है।
चतुर्थी
पाठ 4
क्रिया प्रतिभाषेत् = (वह) उत्तर दे (गा)। पृच्छेयम = पूर्वी (गा)। प्रतिवदेत् = (वह) 22 उत्तर दे (गा)। सेवसे = (तू) सेवन करता है। सेवते = (वह) सेवन करता है।