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4. हरये
हरिभ्याम्
हरिभ्यः
5. हरेः
6. ,
होः
हरीणाम्
7. हरौ
हरिषु इसी प्रकार भूपति, अग्नि, रवि, कवि आदि शब्दों के रूप बनते हैं। प्रथम पाठ में दिए नियम 3 के अनुसार हरि, रवि आदि शब्दों के रूपों में नकार का णकार हो जाता है।
प्रथम पाठ के नियम 1 में कहा गया है कि एकवचन एक की संख्या का बोधक, द्विवचन दो की संख्या का बोधक तथा बहुवचन तीन अथवा तीन से अधिक की संख्या का बोधक होता है, जैसे
1. एकवचन-रामस्य चरित्रम् = (एक) राम का (एक) चरित्र।
2. द्विवचन-मुनिमूषकयोः कथा = मुनि और मूषक (इन दोनों) की कथा। रामस्य बांधवौ-एक राम के (दो) भाई।
___3. बहुवचन-श्रीकृष्णभीमार्जुनाः जरासंधस्य गृहं गताः = श्रीकृष्ण, भीम तथा अर्जुन (ये तीनों) (एक) जरासन्ध के (एक) घर को गए। कुमारेण आम्राः आनीताः = (एक) लड़का (तीन अथवा तीन से अधिक अर्थात् दो से अधिक) आम लाया।
इस प्रकार संस्कृत में वचनों द्वारा संख्या का बोध होता है। हिन्दी में दो की संख्या का बोध करने के लिए कोई खास वचन का चिह्न नहीं है। यही संस्कृत की विशेषता और पूर्णता का द्योतक है। अब हर विभक्ति के तीनों वचनों का उपयोग किस प्रकार किया जाता है, यह बताया जा रहा है।
प्रथमा विभक्ति वाक्य में प्रथमा विभक्ति कर्ता का स्थान बताती है (कर्ता वह होता है जो क्रिया करता है)।
1. रामः राज्यम् अकरोत् = राम राज्य करता था। 2. रामलक्ष्मणौ वनं गच्छतः = राम लक्ष्मण (ये दो) वन को जाते हैं।
3. पाण्डवाः श्रीकृष्णस्य उपदेशं शृण्वन्ति = (तीन अथवा तीन से अधिक) पाण्डव श्रीकृष्ण का उपदेश सुनते हैं।
इन तीन वाक्यों में क्रम से 'रामः, रामलक्ष्मणौ, पाण्डवाः' ये पद एकवचन, द्विवचन, बहुवचन के हैं और उनके अपने-अपने वाक्यों में जो क्रिया आई है, उस-उस क्रिया के ये कर्त्ता हैं।