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व्याकरण जानने के लिए प्रथम संस्कृत अक्षरों की बनावट पर तथा शब्दों की घटना पर एक दृष्टि डालनी चाहिए, अन्यथा व्याकरण के नियम ठीक ध्यान में नहीं आ सकते।
व्यंजन और स्वर मिलकर संस्कृत के तथा हिन्दी के अक्षर बनते हैं। जैसे देखिएक् + अ क। म् + अ-म।
ल् + अ-ल। अर्थात् 'कमल' शब्द की बनावट 'क् + अ + म् + अ + ल् + अ' इतने वर्गों से हुई है। इसी प्रकार
(र+आ) + (म् + अ) राम। (प् + इ) + (त् + आ)=पिता। (उ) + (द् + य् + आ) + (न् + अ + म्)-उद्यानम्। (ई) + (श् + क् + अ) + (इ + अः)ईश्वरः। (प् + उ) + (स् + त् + अ) + (क् + अ + म्) पुस्तकम्। (य् + अ + त) यत्। (द् + ए) + (व् + अः)=देवः।
पाठकों को चाहिए कि वे इस अक्षर-क्रम तथा शब्द-क्रम को स्मरण रखें। संस्कृत के अक्षर तथा शब्द जैसे लिखे जाते हैं, वैसे ही बोले भी जाते हैं; और जैसे बोले जाते हैं, वैसे ही लिखे भी जाते हैं। उर्दू-अंग्रेज़ी की तरह 'लिखना कुछ, और बोलना कुछ' वाली बात यहाँ नहीं है, इसलिए संस्कृत का शब्द-क्रम (Spelling, स्पैलिंगहिज्जे) उर्दू-अंग्रेज़ी की अपेक्षा सुगम है।
संस्कृत में व्यंजन और स्वर आमने-सामने आते ही जुड़ जाते हैं जैसे(तं-) तम् + अपि-तमपि। (त्वं=) त्वम् + आगच्छ-त्वमागच्छ। यद् + अस्ति-यदस्ति। तद् + अस्ति-तदस्ति।
इस प्रकार के योग का वर्णन हम आगे के पाठ में करेंगे। इसलिए पाठकों को चाहिए कि वे इस योग की व्यवस्था को ध्यान में रखें। जहाँ-जहाँ योग आएगा वहाँ-वहाँ पृष्ठ के नीचे टिप्पणी देकर उस शब्द को खोलकर भी बताएंगे।
अब कुछ वाक्य दिए जाते हैं। उनकी ओर पाठकों को ध्यान देना चाहिए। इन वाक्यों के अन्दर उक्त प्रकार के योग दिए गए हैं।
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