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तैजसलब्धि (कुंडलिनी योग )
योग की चर्चा में कुंडलिनी का सर्वोपरि महत्त्व है। जैन परम्परा के प्राचीन साहित्य में कुंडलिनी का प्रयोग नहीं मिलता, उत्तरवर्ती साहित्य में इसका प्रयोग मिलता है। यह तंत्रशास्त्र और हठयोग का प्रभाव है । आगम और उसके व्याख्या साहित्य में कुंडलिनी का नाम है - तैजसलब्धि । अग्निज्वाला के समान लालवर्ण वाले पुद्गलों के योग से होने वाली चैतन्य की परिणति का नाम है - तैजसलब्धि ।
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२८ सितम्बर
२००६
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