________________
धर्म्यध्यान : विपाक विचय (३) कर्म की प्रथम अवस्था है बंध और अंतिम अवस्था है विपाक अथवा उदय। कर्म का विपाक प्रतिक्षण होता रहता है और वह अनेक प्रकार का होता है।
कर्म का विपाक द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के सापेक्ष है। तात्पर्य की भाषा में कर्म के विपाक में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव निमित्त बनते हैं।
स विपाक इति ज्ञेयो यः स्वकर्मफलोदयः । प्रतिक्षणसमुद्भुतश्चित्ररूपः शरीरिणाम्।। कर्मजातं फलं दत्ते विचित्रमिह देहिनाम्। आसाद्य नियतं नाम द्रव्यादिकचतुष्टयम्।।
ज्ञानार्णव ३५.१,२
१६ सितम्बर
२००६