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धर्म्यध्यान : विपाक विचय (२) जो अरति (चैतसिक उद्वेग) का निवर्तन करता है, वह मेधावी होता है। संयम में रति और असंयम में अरति से चैतन्य
और आनंद का विकास होता है। __संयम में अरति और असंयम में रति करने से उसका ह्रास होता है; इसलिए साधक को यह निर्देश दिया है कि वह संयम में होने वाली अरति का निवर्तन करे।
अरइं आउट्टे से मेहावी।
आयारो २.२७
१५ सितम्बर २००६