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धर्म्यध्यान : अपाय विचय (२) अपाय का अर्थ है-कर्मबंध । बंध का मोक्ष कैसे हो सकता है? इस विषय में चिंतन करना अपाय-विचय है। आचार्य शुभचंद्र ने अपाय के साथ उपाय का उल्लेख किया है। अपाय का चिंतन करने के साथ ही उपाय का भी चिंतन करना चाहिए।
जब तक बाह्य वस्तुओं के साथ ममत्व का संबंध है, तब तक कर्मबंध का निरोध नहीं हो सकता। इस प्रकार का चिंतन उपाय है।
अपायविचयं ध्यानं तद्वदन्ति मनीषिणः । अपायः कर्मणां यत्र सोपायः स्मर्यते बुधैः ।। यावद्यावच संबन्धो मम स्याबाह्यवस्तुभिः । तावत्तावत्स्वयं स्वस्मिन्स्थितिः स्वप्नेऽपि दुर्घटा।।
ज्ञानार्णव ३४.१,१४
१२ सितम्बर २००६