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रौद्रध्यान (२) हिंसानुबंधी-इस ध्यान में व्यक्ति हिंसा में आनंद का अनुभव करता है, वह हिंसानन्द होता है। जीव को मारने के उपाय, दूसरे को दुःख देने के उपाय इस प्रकार की प्रवृत्तियों में उसकी स्मृति बनी रहती है, संक्लिष्ट अध्यवसाय बना रहता है। इस प्रकार का व्यक्ति ताड़ना, अंगच्छेद करने में आनंद का अनुभव करता है। इसलिए इसे हिंसानन्द भी कहा जाता है।
सत्त्वव्यापादनोद्वन्धपरितापनताडनकरचरणश्रवणनासिकाऽ-धरवृषणशिश्नादिच्छेदनस्वभावं हिंसानन्दम्। तत्र स्मृति-समन्वाहारो रौद्रध्यानम्।
तभा. २ पृ. २६७
२ सितम्बर २००६