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तादात्म्य ध्यान (२) विमल बनाने वाले विमल प्रभो! तुम सचमुच विमल हो। विमल का ध्यान करने वाला निर्मल बन जाता है। तुम्हारे प्रति मेरा शरीर और मन, दोनों प्रीति से सराबोर हो गये।
तुमने विमल ध्यान किया, इसलिए हे जगदीश! तुम विमल बन गये। जो कोई तुम्हारा (विमल का) ध्यान करेगा, वह तुम्हारे जैसा हो जायेगा।
विमल करण प्रभु विमलनाथ जी, विमल आप वर रीत। विमल ध्यान धरतां हुवै निर्मल, तन मन लागी प्रीत।। विमल ध्यान प्रभु आप ध्याया, तिण सूं हुवा विमल जगदीश। विमल ध्यान बलि जै कोई ध्यासी, होसी विमल सरीस ।।
चौबीसी १३.१,२
२६ जुलाई २००६
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