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तादात्म्य ध्यान (१) तुम्हारी वाणी चन्द्रमा की भांति शीतल और उपशम रस से भरी हुई है। जो व्यक्ति उसे सुनते हैं, उनके कर्म, भ्रम और मोहजाल दूर हो जाते हैं।
तुम सही अर्थों में वीतराग हो। जो अपने चित्त को एकाग्र बना तुम्हारा ध्यान करते हैं, वे परम मानसिक तोष की प्राप्ति होने पर ध्यान-चेतना के द्वारा तुम्हारे समान बन जाते हैं।
हो प्रभु! चंद जिनेश्वर चंद जिसा, वाणी शीतल चंद सीन्हाल हो। प्रभु! उपशम रस जन सांभल्या, मिटै करम भरम मोह जाल हो। अहो! वीतराग प्रभु तूं सही, तुम ध्यान ध्यावै चित रोक हो। प्रभु! तुम तुल्य ते हुवै ध्यान सूं, मन पायां परम संतोष हो।
चौबीसी ८.१,३
२८ जुलाई २००६
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