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प्राणायाम (२) प्राणायाम में जो प्राण शब्द का प्रयोग है उसका अर्थ सामान्यतया श्वास किया जाता है। यह विमर्शनीय बिन्दु है। प्राण का मूल अर्थ जीवनीशक्ति है। श्वास तनुपट से नीचे नहीं जाता। प्राण का संचार पूरे शरीर में हो सकता है।
आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार प्राणायाम का अर्थ है-श्वास और प्रश्वास की गति को रोकना। महर्षि पतंजलि ने रेचक और पूरक का उल्लेख नहीं किया है। जैन योग में भी श्वाससंयम और मंदश्वास का विधान रहा है। संभवतः रेचक, पूरक और कुंभक-प्राणायाम के इन तीन प्रकारों का हठयोग में समाहार किया गया है।
प्राणायामः प्राणायामः श्वासप्रश्वासरोधनम्।
अभिधान चिन्तामणि १.८३
७ मई २००६
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