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आसन (२) आचार्य शुभचन्द्र ने पर्यंकासन, अर्द्धपर्यंकासन, वज्रासन, वीरासन, सुखासन, पद्मासन और कायोत्सर्ग को ध्यानासन के रूप में स्वीकार किया है।
उन्होंने ध्यान के लिए आसन की अनिवार्यता नहीं मानी। उनका अभिमत है कि जिस आसन में बैठकर मन निश्चल किया जा सके, वही आसन उपयोगी है।
वर्तमान काल में शरीर का वह वीर्य नहीं है जो अतीत में था। इसलिए कायोत्सर्ग और पर्यंकासन, इन दो आसनों का ही प्रयोग करना चाहिए।
पर्यङ्कमर्द्धपर्यडू वजं वीरासनं तथा। सुखारविन्दपूर्वे च कायोत्सर्गश्च सम्मतः ।। येन येन सुखासीना विदध्युनिश्चलं मनः । तत्तदेव विधेयं स्यान्मुनिभिर्बन्धुरासनम्।। कायोत्सर्गश्च पर्यङ्क: प्रशस्तं कैश्चिदीरितम्। देहिनां वीर्यवैकल्यात्कालदोषेण संप्रति।।
ज्ञानार्णव २८.१०-१२
३० अप्रैल २००६