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आठ
पुस्तक को आद्योपान्त पढकर संशोधन सुझाया और अपना पूर्वमत लिखकर दिया। उनका यह सहयोग भुलाया नहीं जा सकता। भाषातत्त्वविभाग कलकत्ता विश्वविद्यालय के अध्यापक श्री सत्यरंजन वन्द्योपाध्याय ने अपना पूर्वमत लिखकर हमारा उत्साह बढाया है। भाई जगदीश के सहयोग से यह पुस्तक इतनी जल्दी पाठक के हाथों में है। उन सभी लेखकों का हम आभारी हैं जिनकी पुस्तकों का हमने सहयोग लिया है । पाठकों से निवेदन है कि वे इस पुस्तक पर अपना अमूल्य अभिमत व सुझाव दें जिससे भविष्य में और अधिक हृदयग्राही बन सके। पाठकों से एक सुझाव हमारा भी है कि शुद्धिपत्र से अशुद्धियों को दूर कर पढ़ें जिससे शंका पैदा ही न हो।
मुनि श्रीचंद 'कमल' मुनि विमलकुमार