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पुरोमत
युवाचार्य महाप्रज्ञ द्वारा लिखित 'वाक्यरचना बोध' नामक पुस्तक का आद्योपान्त अवलोकन किया। संस्कृत व्याकरण में प्रवेश के इच्छुक व्यक्तियों के उद्देश्य से लिखी गई यह पुस्तक अपने उद्देश्य की पूर्ति में सर्वथा उपयोगी है। संस्कृत की व्याकरण लिखना कठिन कार्य है। इसके लिए व्यापक वैदुष्य के साथ प्रयोग क्षेत्र का विस्तृत ज्ञान अपेक्षित है। यह बात विकल्पातीत है कि युवाचार्य महाप्रज्ञ का व्यापक वैदुष्य इस कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त है।
___ अक्षर विज्ञान से इस पुस्तक का आरंभ किया गया है। वर्षों के सम्प्रयोगजन्य विकृतियों का परिचायक सन्धिप्रकरण का प्रस्तुतीकरण, उदाहरण और प्रत्युदाहरण के माध्यम से इस प्रकार किया है जिससे जिज्ञासु व्यक्ति सन्धि के नियमों को सुगमता से हृदयंगम कर लें।
वर्ण सम्बन्धी विचार के अनन्तर वर्णसमूह पदों की निष्पत्ति की प्रक्रिया को बडे सरल ढंग से समझाने का प्रयास किया गया है । सूत्रों का उल्लेख और उनका अर्थ बता कर पद की निष्पत्ति करके तत्सम पदान्तर का मार्ग यहां सुगम बना दिया गया है ।
__क्रिया वाक्यप्रयोग का प्रधान साधन है। क्रिया की निष्पत्ति धातु से होती है। गणभेद से क्रिया नानारूपवती होती है। प्रस्तुत पुस्तक में सारे गणों का प्रस्तुतीकरण जिस सरल प्रणाली से किया गया है वह अपने में अपूर्व हैं। व्याकरण के क्षेत्र में ण्यन्त, सन्नन्त आदि प्रक्रिया भाग का विवेचन बहुत कठिन समझा जाता रहा है । किन्तु इस पुस्तक में उस कठिन भाग को समझाने का जो प्रयास किया गया है वह सर्वथा श्लाघ्य है। प्रत्येक पाठ के बाद अभ्यास का जो क्रम यहां अपनाया गया है, वह विषय को सरल बनाने तथा उसके दृढ़तर संस्कार के लिए नितान्त उपयोगी है। पुस्तक की भाषा हिन्दी होने के कारण प्रतिपाद्य विषयों की सुबोधता सहज ही हो गई है। उदाहरण और प्रत्युदाहरणों के माध्यम से प्रयोगों की शुद्धाशुद्धि का परिज्ञान इसका स्तुत्य प्रयास है। आधुनिक व्यावहारिक शब्दों के लिए संस्कृत शब्दों का चयन तथा उनकी निर्मिति इस पुस्तक की अपनी विशेषता है। इस पुस्तक में जिन नियमों का उल्लेख किया गया है उनके आधार भिक्षु शब्दानुशासन के सूत्र हैं । तथापि प्रतिपादनशैली इतनी सरल है कि यह पुस्तक अन्य व्याकरण के पाठकों के लिए भी सर्वथा उपयोगी है। इस पुस्तक की अपनी एक विशेषता