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स्त्रीप्रत्यय (२) तरुणी।
नियम ८६--- (जातेरयोपधनित्यस्त्रीशूद्रात् २।३।३६) य उपधा वाले शब्द, नित्यस्त्रीजातिवाचक शब्द और शूद्र शब्द को छोड़कर जातिवाची अकारन्त नाम से ईप् प्रत्यय होता है । मृगी, हंसी, ब्राह्मणी, कुक्कुटी, शूकरी । य उपधा-इभ्या, क्षत्रिया, वैश्या, आर्या । नित्यस्त्री-मक्षिका, यूका, शूद्रा ।
नियम ८७-(शोणादे: २।३।३४) शोण आदि शब्दों से ईप् प्रत्यय विकल्प से होता है। शोणी, शोणा । चण्डी, चण्डा। कमली, कमला। विशाली, विशाला। कल्याणी, कल्याणा। उदारी, उदारा । कृपणी, कृपणा ।
नियम ८८ --- (इन्द्रवरुणभवशवरुद्रमृडानामानुक् च २।३।५५) भर्ता वाची इन्द्र आदि शब्दों से ईप् प्रत्यय होता है और आनुक् (आन् ) का आगम होता है । इन्द्रस्य स्त्री इन्द्राणी, वरुणानी, भवानी, शर्वाणी, रुद्राणी, मृडानी।
__नियम ८६ - (मातुलाचार्योपाध्यायाद् वा २।३।५६) मातुल, आचार्य और उपाध्याय शब्दो से ईप् प्रत्यय होता है और आनुक् का आगम विकल्प में होता है । मातुलानी, मातुली। उपाध्यायानी, उपाध्यायी। आचार्यानी आचार्थी।
नियम ६० क-(आर्यक्षत्रियाद् वा २।३।६०) आर्य, क्षत्रिय शब्द से ईप् प्रत्यय होता है और आनुक् का आगम विकल्प से होता है। आर्याणी, आर्या । क्षत्रियाणी, क्षत्रिया।
-- (असहनविद्यमान . . . . . २।३।४५) पूर्वपद में सह और विद्यमान शब्द तथा नसमास को छोड़कर स्वअंगवाची अकारान्त शब्दों से ईप्रत्यय विकल्प से होता है। पीनस्तनी, पीनस्तना । अतिकेशी, अतिकेशा। यहां नहीं होता है--सहकेशा, अकेशा । विद्यमानकेशा ।
ग--(नाभि कोदरौष्ठजवादन्तकर्णशृङ्गाङ्गगात्रकण्ठात् २।३।४६) पूर्वपद में सह और विद्यमान शब्द तथा नसमास को छोड़कर नासिका आदि स्वाङ्गवाची शब्दों से ईप्रत्यय विकल्प से होता है। सुनासिकी, सुनासिका । कृशोदरी, कृशोदरा बिम्बोष्ठी, बिम्बोष्ठा । यहाँ ईप नहीं होगासहनासिका अनासिका, विद्यमाननासिका इत्यादि ।
घ - (पुच्छत् २।३।४८) पूर्वपद में सह, विद्यमान और नञ् समास को छोड़कर पुच्छ शब्द से ईप् प्रत्यय विकल्प से होता है। दीर्घपुच्छी, दीर्घपुच्छा। अतिपुच्छी, अतिपुच्छा।
___ङ- (कवरमणिविपशरादे: २।३।४६) कवर, मणि, विष और शर शब्द पूर्वपद में हो तो पुच्छ शब्द से ईप् प्रत्यय होता है। कबरपुच्छी, मणिपुच्छी, विषपुच्छी, शरपुच्छी।
नियम ६१-इतोक्त्यर्थाद् वा २।३।७५) क्ति अर्थ वाले प्रत्ययान्त