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वाक्यरचना बोध
नाम और क्रिया की अवस्था में भेद दिखलाने वाले शब्दों को विशेषण कहते हैं। विशेषण के दो भेद हैं-नामविशेषण और क्रियाविशेषण।।
जिस शब्द से नाम की कोई विशेषता जानी जाती है उसे नामविशेषण कहते हैं । जैसे-दुष्टो मनुष्यः दुष्टतां न जहाति । इस वाक्य में दुष्ट.शब्द मनुष्य का विशेषण है। यह उस मनुष्य की विशेषता यानि एक अवस्था बतलाता है-वह मनुष्य दुष्ट है। सब मनुष्यों जैसा नहीं है, इसका बोध कराता है।
नामविशेषण के मुख्यतया चार भेद हैं-सार्वनामिक, गुणवाचक, संख्यावाचक और परिमाणवाचक ।
(१) सार्वनामिक विशेषण-संज्ञा के स्थान पर जिन शब्दों का प्रयोग होता है उन्हें सर्वनाम कहते हैं। संस्कृत में सर्वनाम शब्द निम्न है- तद्, एतद्, इदम्, युष्मद्, अस्मद् इत्यादि । जहां सर्वनाम विशेषण होता है उसे सार्वनामिक विशेषण कहते हैं । जैसे-अहं रामः ।
(२) गुणवाचक विशेषण-जहां गुणवाचक शब्द विशेषण बनते हों उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे-नवीनं पुस्तकम् । विस्तृतं स्थानम् । चतुष्कोणः पर्वतः । दुर्बलं शरीरम् । सज्जनः पुरुषः ।
(३) संख्यावाचक विशेषण-जहां संख्यावाचक शब्द विशेषण बनता हो उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं । जैसे- द्वादशः आगमः ।
(४) परिमाणवाचक विशेषण-जहां परिमाणवाचक शब्द विशेषण बनता हो उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं । जैसे—अल्पं दुग्धम् ।।
क्रियाविशेषण-जिस शब्द से क्रिया की विशेषता जानी जाती है उसे क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे–मन्दं गच्छति-इस वाक्य में 'मन्द' शब्द चलने की विशेषता बतलाया है अर्थात् हमें इस बात का बोध कराता है कि चलने की अवस्था कैसी है। क्रियाविशेषण में द्वितीया विभक्ति, नपुंसकलिंग और एकवचन होता है । जैसे-- उच्चजल्पति । मृदु पचति । क्रूरं पश्यति ।
संधिविचार नियम ७०- (सोऽह्न : २।१।१०५) पद के अंत में अहन् शब्द के अंत को सकार आदेश हो जाता है।
नियम ७१ - (स्रोविसर्गः २।१११०३) पद के अंत में सकार और रेफ को विसर्ग आदेश हो जाता है। अहो राजते, अहो रूपम् ।
नियम ७२-(रोऽरस्यादि भे २।१।१०६) पदान्त में अहन शब्द हो तो उसके अंत को रकार आदेश हो जाता है, आगे रकार और स्यादिप्रत्ययों में भ आदि प्रत्ययों को छोड़कर ।
नियम ७३-(र: १।३।५६) रकार का विसर्ग बना हो वह वापस रकार हो जाता है यदि अब परे हो तो । अहरहः, अहर्गणः, अहर्भवः, प्रातरत्र,