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पाठ १४ : विशेषण और विशेष्य
शब्दसंग्रह उन्मादः (पागलपन)। प्रतिश्यायः (जुकाम)। चिकित्सकः (वैद्य) । अनाचारः (अकरणीय)। पर्यंकः (पल्यंक) । प्रजा (प्राणी)। पथ्यं (हितकारी) शर्करोदकं / शर्बत) ) उपवनं (बगीचा) । कृशः (दुर्बल) । तीक्ष्णः (तेज) । मन्दः (मन्द) । हरितः (हरा) । कृष्णः (काला) । श्वेतः (सफेद)। नीलः (नील) । रक्तः (लाल)। पीतः (पीला) । सज्जनः (सज्जन) । दुर्जनः (दुष्ट) । दक्षः (चतुर) । सुंदरः (सुंदर)।
परिमाण वाचक शब्द - गुजा (रत्ती) । कणमा (छटांक) द्विकणमे (अधपाव)। माषक: (माशा)। तोलकः (तोला)। कणमाचतुष्टयं (पाव भर) । अर्धसेरकं (आधा सेर) । सेरकं (सेरभर) । धटिका (धड़ी, पंसेरी)। धारा (दश सेर) । अर्धमणः (२० सेर) । मणः (मण)।
धातु-वाछि -- इच्छायाम् (वाञ्छति) इच्छा करना । तकि-कृच्छजीवने (तङ्कति) कष्ट साध्य जीवन जीना । खजि --गुति वैकल्ये (खजति) लंगडाना । गुजि- अव्यक्ते शब्दे (गुञ्जति) गूंजना। लुटि---स्तेये (लुण्टति) लूटना । णिदि--कुत्सायां (निन्दति) निंदा करना। चदि-दीप्त्याह्लादनयोः (चन्दति) दीप्ति और आनंद होना । टुनदि - समृद्धी (नन्दति) समृद्ध होना । ऋदि, क्लदि-रोदनाह्वानयोः (क्रन्दति, क्लन्दति) रोना और बुलाना । चुबिवक्त्रसंयोगे (चुम्बति) चुम्बन करना । काक्षि ---कांक्षायां (काङ्क्षति) इच्छा करना ।
दधि, वारि शब्द याद करो। अक्षि, अस्थि के रूप दधि की तरह चलते हैं। (देखें परिशिष्ट १ संख्या २६,२७) ।
____ वाछि धातु के रूप याद करो। तकि से लेकर काक्षि तक वाछि की तरह रूप चलेंगे । (देखें परिशिष्ट २ संख्या १६) ।
विशेष्य, विशेषण जो शब्द अर्थवान् हो उसे नाम कहते हैं। जैसे-महावीरः, बालकः, गौः, वृक्षः, ग्रामः, पुस्तकम् ।
जिस नाम के पीछे विशेषण जुड़ जाता है तब वह नाम विशेष्य बन जाता है।
विशेषण द्वारा जिसकी विशेषता जानी जाती है उसे विशेष्य कहते हैं। जैसे-दुष्टो मनुष्यः-इसमें मनुष्य विशेष्य है और दुष्ट विशेषण ।