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लिंगबोध ( २ )
हों वे शब्द नपुंसक होते हैं जैसे -- रोचिस् (रोचिः ) किरण | यशस् ( यश:) यश । शर्मन् ( शर्म ) सुख । वर्मन् (वर्म) कवच | हेमन् (हेम) स्वर्ण । दामन् (दाम) माला । पामन् ( पाम ) खुजली | वर्त्मन् ( वर्त्म) मार्ग । धामन् ( धाम तेज । वर्ष्मन् ( वर्ष्म) शरीर ।
नियम ६२ त्व और ट्यण् प्रत्ययान्त शब्द भी नपुंसकलिंगी होते हैं । ट्यण् प्रत्यय में आदि स्वर की वृद्धि और शब्द के अन्त में अकार या इकार का लोप होकर 'य' मिल जाता है । जैसे— मधुरत्व ( मधुरत्वम् ), गंभीरत्व ( गंभीरत्वम् ), माधुर्य (माधुर्यम् ) गाम्भीर्य ( गाम्भीर्यम् ) ।
कुछ स्त्रीवाची शब्द नपुंसकलिंगी भी होते हैं । जैसे— कलत्र ( कलत्रम्) ।
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त्रिलिङ्गी
नियम ६३ – गुणवाची शब्द - काला,
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पीला, नीला, सफेद, अच्छा बुरा, सुन्दर, मधुर आदि गुणवाची शब्द त्रिलिंगी होते हैं । जैसे - कृष्णः पक्षः । कृष्णा गौ: । कृष्णं शरीरम्
नियम ६४ - संख्यावाचीशब्द -एक, दो, तीन, चार- ये त्रिलिंगी होते हैं । एको मुनिः । एका साध्वी । एकम् रत्नम् ।
नियम ६५ – परिमाणवाचीशब्द – थोड़ा, अधिक, लम्बा, चौड़ा, छोटा, बड़ा आदि परिमाणवाची शब्द त्रिलिंगी होते हैं ।
अल्प: आहारः । अल्पा भक्तिः । अल्पं सामर्थ्यम् ।
नियम ६६ - सर्व, विश्व, उभ, उभय, त्यद्, तद्, यद्, अदस्, इदम्, आदि सर्वादिगण के सब शब्द त्रिलिंगी होते हैं । सर्वे लोकाः । सर्वा शक्तिः ।
सर्वं जगत्)
संधिविचार
नियम ६७--- -- ( अतोत्यु: १ (३(४६) (हबे १1३1५० ) – अकार से परे विसर्ग को उकार हो जाता है यदि अकार या हब प्रत्याहार परे हो तो । जैसे—कः+ अत्र – कोऽत्र । जिनः + अर्च्य : जिनोऽचर्य: । जिन: + वन्द्यः = जिनोवन्द्यः । धर्मः + जयति धर्मोजयति ।
नियम ६८- - (विसर्गस्य सरछते १।३।४४ ) ( वाशसे १ | ३ | ४५ ) विसर्ग को सकार आदेश हो जाता है छत प्रत्याहार परे हो तो । शम प्रत्याहार परे होने पर विसर्ग को 'स' विकल्प से होता है । जैसे - कः + तरति = कस्तरति । कः + चरति कश्चरति 1 कः + टीकते = कष्टीकते । शुद्धः + साधुः - शुद्धस्साधुः, शुद्धः साधुः ।
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नियम ६९ - ( अवर्णभोभगोअघोभ्यो लोपः १ । ३ । ५१ ) अवर्ण, भोस्, भगोस् और अघोस् से परे विसर्ग का लोप हो जाता है हब प्रत्याहार परे होने पर । जैसे— श्रमणाः + गच्छन्तिः श्रमणा गच्छन्ति । भोः + गच्छसि भो