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पाठ १३ : लिंगबोध (२)
शब्दसंग्रह
स्कन्धावार: ( छावनी ) । राजपुरुषः (पुलिस) । कासार : ( तालाब ) । कर्दमः (कीचड़ ) । कापटिकः ( बेईमान ) । अनिलः (हवा) । चटक: (चिड़िया) । घुरः ( गाडी का धुरा, जुवा ) । भस्त्र: (धमनी) । कृष्णपक्षः (कृष्णपक्ष ) । कालायसं ( लोहा) । रत्नं ( रत्न) । गुल्मं ( पुलिसचौकी) । ओदनं ( चावल ) । पुष्पं (फूल) । सलिलं (जल) । पद्मं ( कमल) ।
धातु — लप, जल्प - व्यक्तायां वाचि (लपति, जल्पति ) बोलना । जप - मानसे च ( जपति) जाप करना । चर - भक्षणे च चाद्गती ( चरति ) खाना और जाना । दल - विशरणे ( दलति) नष्ट करना । फल -- निष्पत्ती ( ( फलति ) उत्पन्न होना । रक्ष - पालने ( रक्षति ) रक्षा करना । मह — पूजायां ( महति ) पूजा करना । वज, व्रज-गतो ( वजति, व्रजति) जाना । अज---- क्षेपणे च, चाद् गतो (अजति) फेंकना और जाना ।
अव्यय - सर्वदा (हमेशा) । यदा ( जब ) । तदा ( तब ) । इत: ( यहां से) । अत : ( इसलिए ) ।
रत्न शब्द के रूप याद करो । ( देखें परिशिष्ट १ संख्या २५ ) अकारान्त नपुंसक लिंग के शब्द रत्न की तरह चलते हैं । भवत्, महत् और हसत् शब्दों को याद करो । ( देखे परिशिष्ट १ संख्या १३, ५४, ५५ )
अज धातु के रूप याद करो । ( देखें परिशिष्ट २ संख्या ५१ ) लप से लेकर व्रज तक के रूप पठ धातु की तरह चलते हैं । वज- व्रज के रूप णबादि प्रत्ययों में पठ से भिन्न चलते हैं । (देखें परिशिष्ट २ संख्या ५२, ५३ ) नियम
नियम ५ न त, ल, ये जिनकी उपधा में होते हैं वे शब्द नपुंसक - लिंगी होते हैं । जैसे—अजिन (अजिनम् ) मृग की चमड़ी । चक्रवाल चक्र'वाम्) समूह | अद्भुत ( अद्भुतम् ) आश्चर्य ।
नियम ६० – स्तु, संयुक्त त और र जिनके अन्त में होते हैं वे शब्द नपुंसकलिंगी होते हैं । जैसे - वस्तु ( वस्तु) पदार्थं । अग्र ( अग्रम् ) आगे । गोत्र ( गोत्रम् ) नाम । शुक्र (शुक्रम्) वीर्यं । श्मश्रु ( श्मश्रु) दाढ़ी । लक्ष्य (लक्ष्यम्)
लक्ष्य ।
निमय ६१ - द्विस्वर वाले सकारान्त और मन् प्रत्यय जिनके अन्त में