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परिशिष्ट ३
जिन्नन्त, सन्नन्त, यङन्त, यङ्लुगन्त और भावकर्म की एक-एक धातु का पहले विस्तार से सारे रूप दिए गए हैं। उसके आगे चार्ट में ३६५ धातुओं के संक्षिप्त रूप तिबादि और द्यादि के प्रथम पुरुष के एकवचन के रूप दिए गए हैं। यङलुगन्त के रूप चार्ट में न आने से अलग दिए हैं। उभयपदी धातुओं के संक्षिप्त रूप में परस्मैपद के रूप के आगे आत्मनेपद के रूप के लिए अन्तिम एक शब्द दिया है जो परस्मैपद और आत्मनेपद का भेद दिखाता है। जैसे—भू धातु जिन्नन्त का तिबादि का एक वचन का रूप भावयति है, उसके आगे (ते) दिया गया है जिसका पूरा रूप बनता है भावयते । भावय शब्द दोनों में समान होने से नहीं दिया गया है। इसी प्रकार द्यादि के परस्मैपद और आत्मनेपद के रूप की (त) से भिन्नता दिखाई गई है। यङन्त के रूप आत्मनेपद और यङ्लुगन्त के रूप परस्मैपद में ही चलते हैं।
जिसके रूप नहीं बनते हैं वहां X का चिह्न दिया गया है। परिशिष्ट ३ की धातुओं का अर्थ और क्रम परिशिष्ट २ से पहले धातुओं की अकारादि अनुक्रमणिका (पृष्ठ २९६ से ३१६ तक) में देखें।
१. भू-सत्तायाम् (जिन्नन्त रूप)
परस्मैपद एकवचन द्विवचन बहुवचन
एकवचन द्विवचन बहुवचन तिबादि
यादादि भावयति ____ भावयत: भावयन्ति प्र० पु० भावयेत् भावयेताम् भावयेयुः भावयसि
____ भावयथ: भावयथ म० पु० भावये: भावयेतम् भावयेत भावयामि भावयावः भावयाम: उ० पु० भावयेयम् भावयेव भावयेम तुबादि भावयतु, भावयतात् ___ भावयताम् भावयन्तु प्र० पु० भावय, भावयतात् भावयतम् भावयत म० पु० भावयानि
भावयाव भावयाम उ० पु० दिबादि
धादि अभावयत् अभावयताम् अभावयन् प्र० पु० अबीभवत् अबीभवताम् अबीभवन् अभावयः अभावयतम् अभावयत म० पु० अबीभवः अबीभवतम् अबीभवत अभावयम् अभावयाव अभावयाम उ० पु० अबीभवम् अबीभवाव अबीभवाम