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पाठ ११ : वाच्य
शब्दसंग्रह
नदी (नदी) । नारी (स्त्री) । पत्नी (पत्नी) । जननी ( माता ) | पृथ्वी (पृथ्वी) । पुत्री ( लडकी ) । पितामही ( दादी ) । मातामही (नानी) । प्रमातामही ( परनानी ) । पितृव्यपत्नी ( काकी, चाची ) । भातृपुत्री ( भतीजी ) । मातुलानी (मामी) । पौत्री (पौती ) । प्रपौत्री ( प्रपोती ) । भगिनी ( बहिन ) । श्याली ( शाली) । ज्येष्ठानी (जेठानी) । देवराणी ( देवरानी) । सौभाग्यक्ती ( सुहागिन स्त्री ) । भातृजाया ( भाभी ) । स्नुषा ( पुत्रवधू) । विधवा (विधवा) । निशा ( रात्री ) । निलयनक्रीडा ( आंखमिचौनी) । रथ्या
(सडक) ।
धातु-धेंट् - पाने ( धयति ) पान करना । ध्यें - चितायाम् ( ध्यायति ) चिंतन करना । ग्लें, म्लैं - हर्षक्षये ( ग्लायति म्लायति ) थकना, मुरझाना । गें— शब्दे (गायति) गाना । देप्— शोधने (दायति) शोधन करना । ष्ट्यें, - संघाते (ष्ट्यायति, स्त्यायति) जमना । ष्णै--- वेष्टने ( स्नायति ) वेष्टित करना । धेट् और ध्यें धातु के रूप याद करो । ( देखें परिशिष्ट २ संख्या १२,१४) ।
एकारान्त धातुओं के रूप घेंट् की तरह और ऐकारान्त धातुओं के रूप प्रायः यें की तरह चलते हैं ।
आत्मन्, राजन्, युवन् और मरुत् शब्दों के रूप याद करो । ( देखें परिशिष्ट १ संख्या ५२,१०,५३,११) ।
वाच्य
जो हम कहना चाहें उसे वाच्य कहते हैं । वाच्य के तीन प्रकार हैंकर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य ।
जिस प्रकार नाम के आगे 'सि' आदि विभक्ति आती है वैसे ही धातु के आगे 'तिप्' आदि विभक्ति (प्रत्यय) आती हैं । धातु के आगे जो प्रत्यय आते हैं उनके आधार पर वाच्य के तीन नामकरण किए गए हैं। यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि जिसमें प्रत्यय आता है उसकी प्रधानता हो जाती है । प्रत्यय कर्त्ता, कर्म, साधन आदि कारकों में आता है ।
कर्तृवाच्य --- जहां धातु से प्रत्यय कर्त्ता में होता है उसे कर्तृवाच्य कहते हैं । कर्तृवाच्य में कर्त्ता में प्रत्यय होने के कारण कर्त्ता में प्रथमा विभक्ति होती है । क्रिया कर्त्ता के अनुसार चलती है । जैसे—छात्रः पाठं पठति ।