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कश्शेते । तत् + चित्रम् = तच्चित्रम् । भवान् + शेते - भवान् शेते ।
नियम ३८ - ( शात् १।३।९ ) शकार से परे तवर्ग को चवर्ग नहीं होता । प्रश्न:, विश्नः ।
वाक्यरचना बोध
नियम ३६ - (ष्टुभि: ष्टुः १।३।६ ) षकार और टवर्ग से परे सकार और तवर्ग में से कोई हो तो सकार को षकार और तवर्ग टवर्ग हो जाता है । षष्ठः, कष्टीकते, तट्टीकते, तण्णकारेण, ईट्टे ।
नियम ४०- - (न पदान्ताट्टोरनाम्नवतिनगरीणाम् १।३।७ ) पद के अन्त में टवर्ग हो, उससे आगे सकार तथा तवर्ग हो तो स को ष और तवर्ग को टवर्ग नहीं होता, नाम्, नवति और नगरी शब्दों को छोडकर । षड्नयनम्, षट् सीदन्ति । तीन शब्दों को होता है -- षण्णाम्, षण्णवतिः, षण्णनगर्यः ।
नियम ४१ - (तो: षि १।३।८ ) षकार परे हो तो तवर्ग को टवर्ग नहीं होता । भवान् षष्ठः ।
नियम ४२ क — . ( लि ल : १ । ३ । १० ) तवर्ग से परे लकार हो तो तवर्ग को लकार हो जाता है । तल्लुनाति, विद्वाल्लिखति । नकार को सानुनासिक कार हो जाता है ।
ख
- ( संषाद्ध से लोप: १।३।६० ) स और एष से परे विसर्ग का लोप हो जाता है, इस परे हो तो । सः + याति [ स याति । एषः -- गच्छति: एष गच्छति ।
— सन्धिरेकपदे नित्यो, नित्यो धातूपसर्गयोः ॥
नित्यः समासे वाक्ये तु स विवक्षामपेक्षते ॥१॥
एक पद में, धातु और उपसर्ग में, समास में सन्धि नित्य होती है । वाक्य में इच्छानुसार है । संधि कर भी सकते हैं और नहीं भी ।
प्रयोगवाक्य
स खल्वन्यायकर्मणि लज्जते अत एव महान् अस्ति । साधुसंगतौ तिष्ठति यः स जागति नक्तं दिवा स्वं प्रति । न्यायो वर्धते, अन्याय क्षयति, एतादृश: कः समयः ? यो बिभेति स जीवन्नपि न जीवति अपितु म्रियत एव । यः शेते मोहनिद्रायां प्रतिपलं क्रीडति च स नास्ति महान् । यस्मै रोचते योगः स भासते भुवि भानुमानिव ।
संस्कृत में अनुवाद करो
पिता रात को जागता है । देवरानी जेठानी से लज्जा करती है । बहन के साथ बैठती है । लडकी और जंवाई (जामाता) दोनों को दूध प्रिय लगता है । दादा, दादी और बडा भाई मामा के पास क्यों गये ? भानजा किससे डरता है ? शाला और श्वसुर क्या कहते हैं ? फूफे का लडका कब यहां से चला गया ? पति और बहनोई व्यापार साथ में करते हैं । मामा गाय