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वाक्यरचना बोध
तादादि-इसका प्रयोग अनद्यतनभविष्यत् अर्थात् एक दिन के बाद में होने वाली क्रिया में होता है।
अहं श्वः इदं पाठं पठितास्मि--मैं कल यह पाठ पढूंगा।
श्वः भविता आचार्यपदारोहणं दिवस:-कल आचार्य का पदारोहण दिवस होगा।
पंचदिवसपश्चात् आचार्याः अत्र आगन्तार:-पांच दिन के बाद आचार्य यहां आयेंगे।
आदित्यवारे परीक्षापरीणामः आगन्ता-सोमवार को परीक्षा परिणाम आयेगा।
परश्वः सः उपवासं कर्ता-परसों वह उपवास करेगा।
स्यत्यादि-इसका प्रयोग सामान्य भविष्यत् के अर्थ में होता है। जैसे
अहं परीक्षायामुत्तीर्णो भविष्यामि-मैं परीक्षा में उत्तीर्ण होऊंगा। मासेन सः आगमिष्यति-वह एक मास से आयेगा। रामः कार्यं करिष्यति--राम कार्य करेगा। मोहनः पाठं पठिष्यति–मोहन पाठ पढेगा। त्वं किं करिष्यसि-तुम क्या करोगे ?
स्यदादि-जहां एक काम के न होने से भविष्य में होने वाले दूसरे कार्य का अभाव दिखाना हो वहां क्रियातिपत्ति का प्रयोग किया जाता है । क्रियातिपत्ति का अर्थ है-एक क्रिया के हुए बिना दूसरी क्रिया का न होना । क्रियातिपत्ति में स्यदादि विभक्ति होती है।
क्रियातिपत्ति को सूचित करने के लिए यत्, चेत् आदि शब्दों का प्रयोग करना होता है। जैसे
सः चेत् अभ्यासं अकरिष्यत् तर्हि उत्तीर्णः अभविष्यत्—यदि वह अभ्यास करता तो उत्तीर्ण होता ।
यदि सः गुरूनुपासिष्यत तदा शास्त्रान्तरगमिष्यत्-यदि वह गुरु की उपासना करता तो शास्त्र के भीतर चला जाता ।
यदि सुवृष्टिरभविष्यत् तदा सुभिक्षमभविष्यत्-यदि अच्छी वर्षा होती तो सुकाल होता।
संधिविचार नियम ३३-(झसा जबाः २।१।१०८) यदि पद के अन्त में सस प्रत्याहार हो तो उसे जब (वर्ग का तीसरा अक्षर) हो जाता है। जैसेवाक्+ ईशः= वागीशः । षट् + अत्र=षडत्र ।
नियम ३४- (नमे जबा अमा वा पदान्ते ॥३॥१) पदान्त में स्थित