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वाक्यरचना बोध
शसिङ् शसु शासुक शासुङ् शिक्ष शिष्ळुर् शीङ् शीलण
शुच
इच्छायाम् हिंसायाम् अनुशिष्टौ इच्छायाम् विद्योपादाने विशेषणे स्वप्ने समाधौ शोके शौचे शोभार्थ शोभार्थे शोभार्थे शोषणे हिंसायाम् तनूकरणे क्षरणे खेदतपसोः
शुधंच् शुभ शुभज् शुम्भज् शुषंच् शश् शोंच
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4.
श्च्युत
इच्छा करना सं ४६० हिंसा करना सं ४६० अनुशासन करना वि ४०१,५८६ इच्छा करना सं ४६० सीखना
सं ४६०,५२०,५५०,५८६. विशेषित करना सं ४६०,५४२,५५७,५८६. सोना
वि ३४२,५२६,५५२,५८६ प्रसन्न चित्त रहना x ५४४ शोक करना वि ३३३,५०८,५४६,५८६ स्वच्छ होना सं ४६०,५३०,५५३,५८६. शोभित होना x ५५१ शोभित होना सं ५२२,५४०,५५६,५८६ शोभित होना सं ४६०,५४०,५५६
शोषण करना सं ४६०,५८६ हिंसा करना
४६०,५८६ छीलना
सं ४६०,५८६ झरना
सं ५१०,५४७ खेद पाना, तपस्या सं ४६२,५३२,५५४,५८६ करना सेवा करना वि ३८८,५२०,५५०,५८६ सुनना
वि ३५६ प्रशंसा करना सं ४६२,५१६,५४६,५८६
आलिंगन करना सं ४६२,५३२,५५४,५८६ मिलाना, जोडना __ सं ४६२ श्वास लेना सं ४६२,५२६,५५२,५८६ मिलना
४६२,५०८,५४६,५८६ देना
x ५४२,५५७,५८६ नष्ट होना, जाना, सं ४६२,५२२ ५५१,५८६ विषाद करना सहना
सं ४६२,५८६ तृप्त होना x ५३० बांधना सिंचन करना सं ४६२,५३८,५५५,५८८ जाना
x ५१२,५४७
श्रमुच्
श्रिन्
सेवायाम्
श्रृंत्
श्लाघृङ् श्लिषंच श्लिषण
श्रवणे कत्थने आलिंगने श्लेषणे प्राणने
4.
संगे
श्वसक षजं षणुनव षद्लू
षहङ् षहच्
दाने विशरणगत्यवसादनेषु मर्षणे तृप्तौ बन्धने क्षरणे गत्याम्
पिन्त
x
षिचंन्ज्
विधु