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परिशिष्ट २
३१५
विष वृश्
वर्तने
वृजीण वतुङ् वृतुङ्च वृधुङ्
वरणे
वृनत् वृष वश् वेंन् वेपृङ्
वेल व्यथषङ व्यधंच व्येन् व्रज व्रश्चूज वीश् व्रीडच्
सेचने
सिंचन करना x ५१४,५५३ संभक्तो अच्छी तरह से सं ४८८
सेवा करना वर्जने छोडना
सं ४८८ होना
वि ३८५,५८४ वरणे
स्वीकार करना सं ४८८ वर्धने बढना
वि ३८६,५२२,५५१,५८४ वरण करना वि ४२६,५३६,५५५,५८४ सेचने बरसना
x ५८४ वरणे स्वीकार करना
४६०,५८४ तंतुसन्ताने सीना
वि ३६३,५८४ चलने धूजना
सं ४६०,५१८,५४६,५८४ गतौ जाना
x ५१२,५४७ भयचलनयोः डरना, हिलना सं ४६०,५८४ ताडने च बींधना, उगना x ४६०,५३०,५५३,५८४ संवरणे ढांकना
x ४६०,५८४ गतौ जाना
वि ३७०,५०८,५४६,५८४ छेदने छेदना
सं ४६०,५३८,५५६,५८४ वरणे
स्वीकार करना सं ४६० लज्जायाम्
लज्जा करना सं ४६०,५२८,५५३ स्तुतौ च स्तुति और हिंसा सं ४६०,५१४,५४८
करना मर्षणे
क्षमा करना सं ४६०,५८४ शंकायाम् शंका करना सं ४६०,५१६,५४८,५८४ शक्ती समर्थ होना, सकना वि ४२६,५३६,५५५,५८४ रुजाविशरणगत्यव रोगी होना, सडना, X ५१०,५४६ सादनेषु जाना, पतला होना कैतवे
कपट करना सं ४६० शातने
पतला करना सं ४६० आक्रोशे श्राप देना
सं ४६०,५२२,५५०,५८६ आक्रोशे श्राप देना x ५३४,५५५,५८६ उपशमे शांत होना सं ४६०,५८६ जाना
X ५२४,५५१
शंसु
शकंन्च शकिङ् शक्लृत्
शट
शठ
शलं. शपन् शपंन्च
शम्
शल
गतो