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धातुओं की अकारादि अनुक्रमणिका .
परिशिष्ट २ परिशिष्ट ३ परिशिष्ट ४ की धातुओं की अकारादि अनुक्रमणिका है। पहली पंक्ति में धातु हैं, दूसरी पंक्ति में धातुओं के संस्कृत अर्थ है, तीसरी पंक्ति में हिन्दी का अर्थ है, चौथी पंक्ति में गण की धातुओं के दो संकेत हैं सं और वि। स संक्षिप्तरूपों का और वि विस्तृतरूपों का द्योतक है । जो धातु गणों में नहीं आई है वहां x का चिह्न है। पांचवीं पंक्ति में पृष्ठों के प्रमाण हैं। पृ० ३२० से ४६७ तक गण की धातु के रूप देख सकते हैं। पृ० ४६८ से ५४५ तक जिन्नन्त, सन्नन्त, यङन्त और भाव कर्म की धातुओं के रूप दिए गए हैं। यङलुगन्त धातुओं के रूप ५४६ पृष्ठ से ५५७ पृष्ठ तक देख सकते हैं । क्त, णक, तृच् आदि प्रत्ययों के रूप पृष्ठ ५५८ से ५६३ पृष्ठ तक हैं ।
धातु
अकिङ्
लक्षणे
अघण अज अञ्चु
अञ्जूर्
अट
गतौ
शब्दे
अण अत अदं
अर्थ चिन्हकरना
सं ४६२ पापकरणे पापकरना
सं ४६२ क्षेपणे च फेंकना
वि ३६८ गतौ च जाना, पूजा करना वि ३७४,५०८,५५८ व्यक्तिम्रक्षण- प्रकट करना, चोपडना, सं ४६२,५४२,५५८ कांतिगतिषु जाना घूमना
सं ४६२,५५८ शब्द करना
सं ४६२ सातत्यगमने सतत घूमना सं ४६२,५१० खाना
वि ३३६,५२४,५५८ प्राणने जीवित रहना सं ४६२,५२६,५५८ दृष्ट्युपसंहारे अंधा करना सं ४६२
रोगी होना गतौ जाना
सं ४६२,५१८ स्तवने स्तुति करना
सं ४६२ पूजायाम् पूजा करना सं ४६२,५०८,५५८ अर्जने संग्रह करना
सं ४६२,५०८,५५८
भक्षणे
अन
रोगे
x
अन्धण अमण् अयङ अर्कण्
4.
अर्च
अर्ज