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पाठ ७८ : भावकर्त्री (२)
शब्द संग्रह
परभृतः ( कोयल ) ।
वर्तक : ( बतख ) । चिल्ल: ( चील) ।
पारावतः (कबूतर ) । चटका ( चिडिया) । मरालः ( हंस) । बकः ( बगुला ) । सारसः (सारस ) । कीर : ( तोता ) । सारिका (मैना ) । ध्वाङ्क्षः (कौआ) । गृध्रः ( गिद्ध ) । श्येन: (बाज ) । कौशिकः ( उल्लू ) । चातकः ( चातक) । चक्रवाकः (चकवा) । बहिन् (मोर) । षट्पदः ( भौंरा ) । शलभः (पतंगा, टिड्डी । सरधा (मधुमक्खी ) । वरटा (हंसी) । चाष: ( नीलकंठ ) । दार्वाघाट: (कठफोडा) । खञ्जन: ( खंजन ) । कुलाय : ( घोंसला ) । क्ति प्रत्यय के रूप
कृति: (कृ) करना । हृति: ( हृ ) हरना । चितिः ( चि) चुनना । भूति: (भू) होना । श्रुति: ( श्रु) सुनना । स्तुतिः (ष्टु) स्तवना करना । निति: ( णी ) प्राप्त करना । संपत्ति: ( सं + पद्) प्राप्त करना । भणितिः (भण्) बोलना । लिखिति: ( लिख) लिखना । लब्धि: ( लभ् ) प्राप्त करना । निग्रहीति: ( नि + ग्रह ) निग्रह करना ।
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स्त्रीलिंग प्रत्यय (क्ति, क्यप्, अन्, य, अ, ङ, क्विप्, अनि )
ये प्रत्यय भावाकर्त्री धातु से स्त्रीलिंग में ही होते हैं । इसलिए इन प्रत्ययान्त रूपों के अंत में स्त्रीलिंग प्रत्यय आप् या ईप् और जुड जाता है । इन प्रत्ययों के योग में षष्ठी विभक्ति होती है ।
नियम ७०६- ( स्त्रियां क्ति: ५।४।८७) धातुओं से क्ति प्रत्यय होता है । कृतिः, हृतिः, चितिः, भूतिः ।
नियम ४०७ - ( श्रवादिभ्यः ५४८८) श्रु आदि धातुओं से क्तिप्रत्यय होता है। श्रुतिः, संपत्ति:, स्तुतिः, लब्धि:, प्रशस्तिः, इष्टिः, भूतिः ।
नियम ७०८- - ( कृन: शिदन् च वा ५।४।६६ ) कृ धातु से शित्संज्ञक अन् और क्यप् प्रत्यय विकल्प से होता है । पक्ष में क्ति प्रत्यय भी । क्रिया, कृत्या, कृतिः ।
नियम ७०६- ( परौ सृचरेर्य: ५।४।६८) परि उपसर्ग उपपद में हो तो सृ और चर् धातु से य प्रत्यय होता है । परिसर्या, परिचर्या ।
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नियम ७१०- ( शंसि प्रत्ययात् ५।४ । १०१ ) शंसि धातु और प्रत्ययअन्तवाली धातुओं से अ प्रत्यय होता । प्रशंसा, मीमांसा, चिकीर्षा,