________________
पाठ ७६ : शीलादि प्रत्यय (३)
शब्दसंग्रह चिकीर्षुः (करने का इच्छुक) । भिक्षुः (भिक्षा करने वाला) । आशंसुः (इच्छा करने वाला) । प्रसवी (उत्पन्न होने वाला) । अत्ययी (नष्ट होने वाला) । विश्रयी (सहारा लेने वाला) । अभ्यमी (सामने जाने वाला)। वमी (वमन करने वाला)। अव्यथी (पीडा नहीं देने वाला)। श्रद्धालुः (श्रद्धा करने वाला) । शयालुः (सोने वाला)। पतयालुः (गिरने वाला) । मृगयालुः (खोजने वाला) । दारु: (दानशील)। सेरु: (बांधने वाला) । सृमरः (गमनशील) । अद्मरः, घस्मरः (खाने वाला)। भंगुरः (नष्ट होने वाला) । भासुरः (दीप्त होने वाला)। मेदुरः (अतिशय स्निग्ध, अतिशय स्नेह वाला) । विदुर: (जानने वाला)। छिदुरः, भिदुरः (काटने वाला) । यायाजूकः (बार-बार यज्ञ करने वाला) । जंजपूकः, वावदूकः (बार-बार बोलने वाला, वातूनी व्यक्ति) । दंदशूकः (जिसका डंसने का स्वभाव हो) चक्रिः (करने वाला) । जज्ञिः (जानने वाला) । सासहिः (बार-बार या अधिक सहन करने वाला) । चाचलिः (बार-बार या अधिक चलने वाला) । वावहिः (बार-बार वहन करने वाला)।
उ, इन्, आलु, रु, मरक, घुर, अक, कि प्रत्यय नियम ६७८- (सन्नाशंसिभिक्षिभ्य: उ: ५२४१) सन् प्रत्ययान्त धातु, आशंस और भिक्ष धातु से शीलादि अर्थ में उ प्रत्यय होता है । चिकीर्षति इत्येवंशीलः चिकीर्षुः । आशंसुः । भिक्षुः ।
नियम ६७६-(प्राज्जुसूभ्यामिन् ५।३।४३) प्र, परा पूर्वक जु और सू धातु से शीलादि अर्थ में इन प्रत्यय होता है । प्रजवति इत्येवंशीलः प्रजवी । प्रसुवति इत्येवंशीलः प्रसवी।
नियम ६८०- (जीणदृक्षिविश्रिपरिभूवमाभ्यमाव्यथिभ्यः ५।३।४४) जि, इण आदि धातुओं से शीलादि अर्थ में इन प्रत्यय होता है। जयी, विजयी । अत्ययी, आदरी, क्षयी, विश्रयी, परिभवी, वमी, अभ्यमी, अव्यथी।
___ नियम ६८१ -- (श्रद्धानिद्रातन्द्राशीङ्दयिपतिगृहिस्पृहिभ्यः आलु: ५।३।४५) इन धातुओं से शीलादि अर्थ में आलु प्रत्यय होता है। श्रद्धालु:, निद्रालु:, तन्द्रालुः, शयालु:, दयालु:, पतयालुः, गृहयालुः, मृगयालुः, लज्जालुः, ईर्ष्यालुः ।